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[217] अष्टादश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
करकण्डू कलिंगेसु, पंचालेसु य दुम्मुहो।
नमी राया विदेहेसु, गन्धारेसु य नग्गई-॥४६॥ कलिंग देश में करकण्डु, पांचाल देश में राजा द्विमुख, विदेह राज्य में नमिराज और गांधार देश में नग्गति राजा-॥ ४६॥
King Karakandu of Kalinga country, king Dvimukha of Panchal country, king Nami of Videha country and king Naggati of Gandhar country- (46)
एए नरिन्दवसभा, निक्खन्ता जिणसासणे।
पुत्ते रज्जे ठवित्ताणं, सामण्णे पज्जुवट्ठिया॥४७॥ ये सभी राजाओं में उत्तम, वृषभ के समान श्रेष्ठ थे। इन चारों राजाओं-प्रत्येकबुद्धों ने अपने-अपने पुत्रों को राज्य-भार दिया और प्रव्रजित होकर मुनिधर्म में सर्वरूपेण स्थिर हो गये॥ ४७॥
All these four kings were best, like a bull, among rulers. All these four kings (selfenlightened ones) entrusted their kingdoms to their sons, got initiated and whole-heartedly embraced asceticism. (47)
सोवीररायवसभो, चेच्चा रज्जं मुणी चरे।
उद्दायणो पव्वइओ, पत्तो गइमणुत्तरं॥४८॥ राजाओं में वृषभ के समान श्रेष्ठ सौवीर नरेश उदायन ने राज्य का त्याग करके दीक्षा ग्रहण की, मुनिधर्म का आचरण किया और मुक्ति प्राप्त की ॥ ४८॥
King Udayan, the ruler of Sauvira region and best, like a bull, among all rulers, renounced his kingdom, got initiated, followed the ascetic-conduct and attained liberation. (48)
तहेव कासीराया, सेओ-सच्चपरक्कमे।
कामभोगे परिच्चज्ज, पहणे कम्ममहावणं॥४९॥ इसी प्रकार श्रेय और सत्य में पराक्रमी काशी-नरेश ने कामभोगों का त्यागकर कर्मरूपी महावन को भस्म कर दिया॥ ४९ ॥
In the same way the king of Kashi, valorous in virtues and truth, renounced all comforts and turned the great forest of karmas to ashes. (49)
तहेव विजओ राया, अणट्ठाकित्ति पव्वए।
रज्जं तु गुणसमिद्धं, पयहित्तु महाजसो॥५०॥ अमर कीर्तिधारी, महायशस्वी, गुण समृद्ध विजय राजा राज्य को तृणवत् त्यागकर प्रव्रजित हो गया ॥५०॥
Endowed with endless glory and great fame and wealth of virtues, king Vijaya abandoned his kingdom like a piece of straw and got initiated. (50)
तहेवुग्गं तवं किच्चा, अव्वक्खित्तेण चेयसा। महाबलो रायरिसी, अदाय सिरसा सिरं ॥५१॥