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तर सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
अष्टादश अध्ययन [218]
इसी तरह अव्याकुल मन से उग्र तपश्चर्या करके राजर्षि महाबल ने सिर देकर-अहंकार का त्याग कर सिरशीर्ष स्थान मोक्ष प्राप्त किया ॥५१॥
In the same way practicing rigorous austerities with an undisturbed mind, king Mahabal sacrificed head (pride) to acquire head (the loftiest status of the liberated). (51)
कहं धीरो अहेऊहिं, उम्मत्तो व्व महिं चरे?
एए विसेसमादाय, सूरा दढपरक्कमा॥५२॥ ये भरत आदि शूरवीर दृढ़ पराक्रमी राजा जिनशासन में विशेषता जानकर ही प्रव्रजित हुये थे। अहेतुवादों से प्रेरित होकर अब कोई धीर पुरुष उन्मत्तों के समान पृथ्वी पर कैसे विचरण करे? ॥ ५२॥
All these brave and resolutely valorous kings, including Bharat and others, got initiated into the Jain order only after being well aware of the unique excellence of Jainism. Now, how can a serene wise man move about on this earth like a mad man devoid of reason ? (52)
अच्चन्तनियाणखमा, सच्चा मे भासियावई।
अतरिंसु तरन्तेगे, तरिस्सन्ति अणागया॥५३॥.. मैंने यह अत्यन्त निदानक्षम-पूर्ण रूप से आत्म-शुद्धि करने वाली सत्य वाणी कही है। इस वाणी को धारण करके अतीतकाल में अनेक व्यक्ति संसार-समुद्र से पार हो गये हैं, वर्तमान में पार हो रहे हैं और भविष्य में भी पार होंगे॥ ५३॥
I have uttered the truth that is capable of purifying the soul. Accepting (and following) this (the sermon) many have crossed the ocean of worldly existence in the past, are crossing it at present and will cross it in future too. (53)
कहं धीरे अहेऊहिं, अत्ताणं परियावसे? सव्वसंगविनिम्मुक्के, सिद्धे हवइ नीरए॥५४॥
-त्ति बेमि। धीर साधक एकान्तवादी अहेतुवाद में अपनी आत्मा को कैसे लगा सकता है? जो सभी प्रकार के संगों-सम्बन्धों से विनिर्मुक्त होता है, वह कर्ममल से रहित होकर सिद्ध होता है॥ ५४॥
-ऐसा मैं कहता हूँ। How can a serene aspirant involve his soul with the unreasonable (ahetu)? One who is free from all worldly ties becomes free from all the karmic-dirt and attains the state of perfection (Siddha-hood or liberation). (54)
. --So I say.