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[215] अष्टादश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र in
Emperor Sagar, the ruler of men, renounced the empire of India right up to the ocean and all his grandeur in order to practice ascetic-discipline (the code of compassion) that finally led to liberation. (35)
चइत्ता भारहं वासं, चक्कवट्टी महिड्ढिओ।
पव्वज्जमब्भुवगओ, मघवं नाम महाजसो॥३६॥ महाऋद्धि-सम्पन्न, महायशस्वी मघवा चक्रवर्ती ने भी भारतवर्ष के राज्य को त्यागकर प्रव्रज्या स्वीकार की थी॥ ३६॥
Endowed with great fortune and fame, emperor Maghavaa also accepted initiation renouncing the empire of Bharatavarsh. (36)
सणंकुमारो मणुस्सिन्दो, चक्कवट्टी महिड्ढओ।
पुत्तं रज्जे ठवित्ताणं, सो वि राया तवं चरे॥ ३७॥ महर्द्धिक, मानवेन्द्र सनत्कुमार चक्रवर्ती भी अपने पुत्र को राजसिंहासन देकर तपश्चर्या में लीन हो गये थे॥ ३७॥
Highly glorious ruler of men, emperor Sanatkumar also gave his empire to his son and got engrossed in austerities. (37)
चइत्ता भारहं वासं, चक्कवट्टी महिड्ढिओ।
सन्ती सन्तिकरे लोए, पत्तो गइमणुत्तरं ॥ ३८॥ महान् ऋद्धि के स्वामी और लोक में शांति करने वाले शांतिनाथ (तीर्थंकर) चक्रवर्ती ने भी संपूर्ण भारतवर्ष के राज्य का त्यागकर प्रव्रज्या ग्रहण की तथा अनुत्तर गति-सिद्धिगति प्राप्त की॥ ३८॥
Very prosperous emperor Shantinaath (Tirthankar also) who spread peace in the world, also renounced the empire of whole Bharatavarsh, got initiated and attained the loftiest state of liberation. (38)
इक्खागरायवसभो, कुन्थू नाम नराहिवो।
विक्खायकित्ती धिइमं, पत्तो गइमणुत्तरं॥ ३९॥ इक्ष्वाकु-कुल के राजाओं में श्रेष्ठ, विख्यात कीर्ति वाले भगवान कुन्थुनाथ नरेश्वर-चक्रवर्ती ने प्रव्रज्या ग्रहण कर अनुत्तर सिद्धगति प्राप्त की।॥ ३९ ॥
Best among the kings of Ikshvaaku clan and having wide fame, emperor Kunthunath (Tirthankar also) too got initiated and attained the loftiest state of liberation. (39)
सागरन्तं जहित्ताणं, भरहं नरवरीसरो।
अरो य अरयं पत्तो, पत्तो गइमणुत्तरं ॥ ४०॥ ___ समुद्र पर्यन्त भारतवर्ष के राज्य को त्यागकर कर्मरज को दूर करके नरों में श्रेष्ठ अरनाथ चक्रवर्ती ने मोक्ष गति प्राप्त की॥ ४०॥