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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
Sons move out their father on death (to cremation ground). In the same way fathers move out their sons and brothers move out their brothers. Therefore, O king! You should indulge in austerities. (15)
[211] अष्टादश अध्ययन
तओ तेणऽज्जिए दव्वे, दारेय परिरक्खिए । कीलन्तऽन्ने नरा रायं !, तुट्ट- हट्ट -मलंकिया ॥ १६ ॥
हे राजन्! मृत्यु के उपरान्त उस व्यक्ति के उपार्जित धन एवं सुरक्षित स्त्रियों का अन्य व्यक्ति हृष्ट, तुष्ट और अलंकृत होकर उपभोग करते हैं ॥ १६ ॥
O king! After the death of a man other people enjoy the wealth earned by him and wives protected by him with delight, satisfaction and flourish. (16)
तेणावि जं कयं कम्मं, सुहं वा जइ वा दुहं ।
कम्मुणा तेण संजुत्तो, गच्छई उ परं भवं ॥ १७ ॥
उस व्यक्ति ने जो भी दुःखकारक अथवा सुखकारक कर्म किये हैं, उनको साथ लेकर वह परभव में जाता है ॥ १७॥
And that deceased person goes to next existence taking along the karmas acquired through his deeds causing misery or joy. (17)
सोऊण तस्स सो धम्मं, अणगारस्स अन्तिए । महया संवेगनिव्वेयं, समावन्नो नराहिवो ॥ १८ ॥
अनगार से महान् धर्म को सुनकर संजय राजा के हृदय में तीव्र संवेग और निर्वेद (वैराग्य) उत्पन्न हुआ ॥ १८ ॥
Listening to the great religion from the ascetic, king Sanjaya's mind was overwhelmed with intense aspiration for liberation and a feeling of detachment. (18) संजओ चइउं रज्जं, निक्खन्तो जिणसासणे । गद्दभास्सि भगवओ, अणगारस्स अन्तिए ॥ १९ ॥
राज्य को त्यागकर संजय राजा अनगार भगवान गर्दभालि के समीप जिनशासन में दीक्षित हो गया ॥ १९ ॥
King Sanjaya renounced his kingdom and got initiated into the Jain order by venerated ascetic Gardabhali. (19)
चिच्चा रट्ठ पव्वइए, खत्तिए परिभासइ ।
जहा ते दीसई रूवं, पसन्नं ते तहा मणो ॥ २० ॥
(संजय अनगार एक बार क्षत्रिय राजर्षि से मिला) राष्ट्र को त्यागकर प्रव्रजित हुए क्षत्रिय मुनि एक बार संजय राजर्षि से कहा- तुम बाह्य रूप से जैसे प्रसन्न दिखाई देते हो, उसी प्रकार तुम्हारा मन भी प्रसन्न -विकाररहित है ॥ २० ॥