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In सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
अष्टादश अध्ययन [212]
(Ascetic Sanjaya once met a Kshatriya ascetic) The Kshatriya ascetic, who got initiated after renouncing his nation, said to ascetic Sanjaya-As you appear outwardly so is your heart, happy (free of perversion). (20)
किं नामे? किं गोत्ते?, कस्सट्ठाए व माहणे?
कहं पडियरसी बुद्ध?, कहं विणीए त्ति वुच्चसि॥२१॥ आपका नाम क्या है? गोत्र क्या है? किस प्रयोजन से आपने मुनिधर्म स्वीकार किया है? किस प्रकार आचार्यों की परिचर्या करते हो? और कैसे विनीत कहलाते हो? ॥ २१॥
What is your name? What is your lineage (gotra)? For what purpose did you accept ascetic code? How do you serve the preceptors (acharyas)? And how are you called modest? (21)
संजओ नाम नामेणं, तहा गोत्तेण गोयमो।
गद्दभाली ममायरिया, विज्जाचरणपारगा॥२२॥ (संजय राजर्षि-) मेरा नाम संजय तथा गोत्र गौतम है। ज्ञान और चारित्र के पारगामी अनगार गर्दभालि मेरे आचार्य हैं॥ २२॥
(Ascetic Sanjaya-) My name is Sanjaya and lineage is Gautam. My preceptor is ascetic Gardabhali, who is accomplished in right knowledge and right conduct. (22)
किरियं अकिरियं विणयं, अन्नाणं च महामुणी !
एएहिं चउहि ठाणेहिं, मेयन्ने किं पभासई॥२३॥ (क्षत्रिय राजर्षि-) हे महामुने! क्रिया, अक्रिया, विनय और अज्ञान-इन चार स्थानों (वादों) के द्वारा कुछ एकान्तवादी तत्त्वज्ञ कुत्सित तत्त्व की प्ररूपणा करते हैं ॥ २३ ॥
(Kshatriya ascetic-) O great ascetic! Some absolutist scholars (heretics) propagate false doctrines through four schools of philosophy-Kriya (action), akriya (inaction), vinaya (humility) and ajnaana (ignorance). (23)
इइ पाउकरे बुद्धे, नायए परिनिव्वुडे।
विज्जा-चरणासंपन्ने, सच्चे सच्चपरक्कमे-॥२४॥ बुद्ध-तत्त्वज्ञानी, परिनिर्वृत्त-परिशांत, ज्ञान-चारित्र से संपन्न, सत्यवादी, सत्य पराक्रमी ज्ञातवंशीय भगवान महावीर ने इस प्रकार प्रगट किया है- ॥ २४॥
___Bhagavan Mahavir of Jnaata lineage, who was enlightened, wise, master of metaphysics, calm, liberated, opulent with right knowledge and conduct, truthful and of right energy, has expressed-(24)
पडन्ति नरए घोरे, जे नरा पावकारिणो।
दिव्वं च गई गच्छन्ति, चरित्ता धम्ममारियं ॥ २५॥ जो मानव पापकर्म करते हैं वे घोर नरक में गिरते हैं और जो श्रेष्ठ धर्म का आचरण करते हैं वे देवगति में जाते हैं॥ २५॥