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An सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
अष्टादश अध्ययन [210]
The frightened king said humbly-Bhante! I am king Sanjaya. Please say something at least. I am afraid that an ascetic in his wrath can reduce millions of people to ashes. (10)
अभओ पत्थिवा ! तुब्भं, अभयदाया भवाहि य।
अणिच्चे जीवलोगम्मि, किं हिंसाए पसज्जसि?॥११॥ (ध्यान पूरा करके अनगार ने कहा-) हे पृथ्वीपति ! तुमको अभय है; लेकिन तुम भी अभयदाता बनो। इस अनित्य जीवलोक (जीव) में तुम क्यों हिंसा में आसक्त हो रहे हो? ॥ ११ ॥
(Concluding his meditation the great ascetic said-) O lord of the land! Have no fear from me. But you should also become the fountainhead of fearlessness. In this transient life why get obsessed with violence? (11)
जया सव्वं परिच्चज्ज, गन्तव्यमवसस्स ते।
अणिच्चे जीवलोगम्मि, किं रज्जम्मि पसज्जसि?॥१२॥ जब सब कुछ यहीं छोड़कर तुम्हें विवश होकर चले जाना है तब इस अनित्य जीवलोक में तुम क्यों राज्य में आसक्त बने हुए हो? ॥ १२॥
When you are bound to go away leaving everything here only, then why cling to the kingdom? (12)
जीवियं चेव रूवं च, विज्जुसंपाय-चंचलं।
जत्थ तं मुज्झसी रायं !, पेच्चत्थं नावबुज्झसे॥१३॥ हे राजन् ! जिनमें तुम मोहमुग्ध बने हुए हो वह जीवन और सौन्दर्य विद्युत् की चमक के समान चंचल है। तुम अपने परलोक के हित को नहीं समझ रहे हो ॥ १३ ॥
O king ! This life and beauty you are infatuated with are momentary like a flash of lightning. You are still ignorant about your benefits in the next world. (13)
दाराणि य सुया चेव, मित्ता य तह बन्धवा।
जीवन्तमणुजीवन्ति, मयं नाणुव्वयन्ति य॥१४॥ स्त्रियाँ, पुत्र, मित्र तथा बन्धुजन-सभी जीवित व्यक्ति के साथ ही रहते हैं, मरने पर उसके साथ कोई भी नहीं जाता ॥ १४॥
Wives, sons, friends and kinfolk give company only to a living person; on death no one gives him company. (14)
नीहरन्ति मयं पुत्ता, पियरं परमदुक्खिया।
पियरो वि तहा पुत्ते, बन्धू रायं ! तवं चरे॥१५॥ अत्यन्त दुःखी होकर पुत्र अपने मृत पिता को बाहर-श्मशान में निकाल देते हैं। इसी प्रकार पिता भी अपने पुत्र को और भाई अपने भाई को निकाल देते हैं। इसलिए हे राजन् ! तुम तपश्चरण करो॥१५॥