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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
सप्तदश अध्ययन [202]
प्रमादयुक्त-असावधान होकर प्रतिलेखन करने वाला, पात्र और कंबल को जहाँ-तहाँ, इधरउधर रख देने वाला तथा प्रतिलेखन में अनायुक्त-असावधान रहने वाला पापश्रमण कहलाता है॥९॥
One who inspects (pratilekhana) his possessions negligently, keeps his pots and blanket scattered and is generally careless in his routine of scrutiny (pratilekhan), is called a sinful ascetic. (9)
पहिलेहेइ पमत्ते, से किंचि हु निसामिया।
गुरुं परिभावए निच्चं, पावसमणे त्ति वुच्चई॥१०॥ इधर-उधर की बातें सुनता हुआ जो प्रमत्त होकर प्रतिलेखना करता है और सदा गुरुजनों का तिरस्कार करता है, वह पापश्रमण कहलाता है॥ १० ॥
He who diverts his attention listening to useless talks and getting negligent during his routine of scrutiny (pratilekhan) and who always slights his seniors, is called a sinful ascetic. (10)
बहुमाई पमुहरे, थद्धे लुद्धे अणिग्गहे।
असंविभागी अचियत्ते, पावसमणे त्ति वुच्चई॥११॥ अत्यधिक कपटयुक्त, अत्यधिक बोलने वाला, ढीठ, लुब्ध, इन्द्रियों और मन पर उचित नियंत्रण न रखने वाला, प्राप्त वस्तुओं का संविभाग नहीं करने वाला तथा गुरु आदि के प्रति प्रेम न रखने वाला पापश्रमण कहलाता है॥११॥
One who is very deceitful, very talkative, arrogant, greedy, has poor control over his mind and senses, does not share collected alms with his fellow ascetics and is not amiable with his fellows and seniors, is called a sinful ascetic. (11)
विवादं च उदीरेइ, अहम्मे अत्तपन्नहा।।
वुग्गहे कलहे रत्ते, पावसमणे त्ति वुच्चई ॥१२॥ शान्त हुए विवाद को पुनः-पुनः भड़काने वाला, अधर्म का आचरण करने वाला, विग्रह-कदाग्रहकलह में रत रहने वाला पापश्रमण कहलाता है॥ १२॥
He who inflames resolved disputes time and again, follows unrighteousness conduct and indulges in disruption, dogmatism and disputation, is called a sinful ascetic. (12)
अथिरासणे कुक्कुईए, जत्थ तत्थ निसीयई।
आसणम्मि अणाउत्ते, पावसमणे त्ति वुच्चई ॥१३॥ जो अस्थिर-आसन वाला है-अर्थात् व्यर्थ ही इधर-उधर चक्कर काटता रहता है। भांड़ों जैसी कुचेष्टा करने वाला, जहाँ-तहाँ सचित्त स्थान पर भी बैठ जाने वाला इस प्रकार आसन के विषय में असावधान रहने वाला पापश्रमण कहा जाता है॥ १३॥
One who is infirm in sitting (keeps on moving around uselessly), has clownish disposition, sits anywhere without ensuring that the place is free of living organisms and thus remains careless about seat, is called a sinful ascetic. (13)