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[201] सप्तदश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
He who slanders those acharyas (heads of the group or order) and upadhyayas (scholarly ascetics who teach) by whom he was taught the scriptures and the code of modesty is called a sinful ascetic. (4)
आयरिय-उवज्झायाणं, सम्मं नो पडितप्पइ।
अप्पडिपूयए थद्धे, पावसमणे त्ति वुच्चई ॥५॥ जो आचार्यों और उपाध्यायों की सम्यक् प्रकार से चिन्ता-सार-संभाल नहीं करता, वह बड़ों का सम्मान न करने वाला, अभिमानी पापश्रमण कहलाता है॥ ५ ॥
That conceited one who is not concerned about acharyas and upadhyayas, who does not take proper care of them and who does not even respect them, is called a sinful ascetic. (5)
सम्मद्दमाणे पाणाणि, बीयाणि हरियाणि य।
असंजए संजयमन्नमाणे, पावसमणे त्ति वुच्चई॥६॥ जो द्वीन्द्रिय आदि प्राणी, बीज और हरित वनस्पति का संमर्दन करता रहता है, स्वयं असंयमी होते हुए भी अपने आप को संयमी मानता है, वह पापश्रमण कहलाता है॥६॥
He who tramples and crushes two sensed and other living beings, seeds and green plants; although undisciplined, considers himself to be restrained, is called a sinful ascetic. (6)
संथारं फलगं पीढं, निसेज्जं पायकम्बलं।
अप्पमज्जियमारुहइ, पावसमणे त्ति वुच्चई॥७॥ जो संस्तारक-बिछौना, पाट, आसन, निषद्या, स्वाध्याय भूमि, पाद-प्रोंछन-पैर पोंछने के लिये कंबल का टुकड़ा-इनका प्रमार्जन किये बिना ही इन पर बैठ जाता है, वह पापश्रमण कहलाता है॥७॥
One who uses a bed, plank, low-stool, seat (nishadya), study-place, mattress (a piece of blanket for cleaning feet) without prior cleaning, is called a sinful ascetic. (7)
दवद्वस्स चरई, पमत्ते य अभिक्खणं।
उल्लंघणे य चण्डे य, पावसमणे त्ति वुच्चई॥८॥ पैरों से दब-दब की आवाज करता हुआ जल्दी-जल्दी चलने वाला, बार-बार प्रमाद करने वाला, साधुधर्म की मर्यादा का उल्लंघन करने वाला और अधिक क्रोध करने वाला पापश्रमण कहा जाता है॥८॥
He who stomps, walks hastily, is habitually careless, transgresses ascetic code and is wrathful, is called a sinful ascetic. (8)
पडिलेहेइ पमत्ते, उवउज्झइ पायकंबलं। पडिलेहणाअणाउत्ते, पावसमणे त्ति वुच्चई॥९॥