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[197 ] षोडश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
एस धम्मे धुवे निअए, सासए जिणदेसिए। सिद्धा सिज्झन्ति चाणेण, सिज्झिस्सन्ति तहावरे॥१७॥
-त्ति बेमि। यह ब्रह्मचर्यधर्म ध्रुव है, नित्य है, शाश्वत है और जिनोपदिष्ट है। इस ब्रह्मचर्यधर्म का पालन करके भूतकाल में अनेक जीव सिद्ध हुए हैं, वर्तमान में हो रहे हैं और भविष्य में भी सिद्ध होंगे॥ १७॥
-ऐसा मैं कहता हूँ। This code of perfect celibacy is fixed, permanent, eternal and propagated by Jinas. By practicing this code of celibacy many souls attained state of perfection (Siddha) in the past, are attaining the same at present and will attain the same in future. (17)
-So I say.
विशेष स्पष्टीकरण गाथा ३-ब्रह्मचर्य के लाभ में सन्देह होना “शंका" है। अब्रह्मचर्य-मैथुन की इच्छा "कांक्षा" है। अभिलाषा की तीव्रता होने पर चित्तविप्लव का होना "विचिकित्सा" है। विचिकित्सा के तीव्र होने पर चारित्र का विनाश होना "भेद" है।
गाथा ९-"प्रणीत" का अर्थ पुष्टिकारक भोजन है, जिससे घृत तथा तेल आदि की बूंदें टपकती हों। (चूर्णि)
IMPORTANT NOTES
Maxim 3 - Doubt about benefits of celibacy is shanka. Non-celibacy or desire of sexual intercourse is kanksha. Mental aberration caused by intensity of desire is vichikitsa. Falling from the ascetic code due to intense mental aberration is bheda.
Maxim9-Nourishing fat-rich diet from which oil oozes is praneet food.