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[195] षोडश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
धम्मलद्धं मियं काले, जत्तत्थं पणिहाणवं । नाइमत्तं तु भुंजेज्जा, बम्भचेररओ सया ॥ ८ ॥
ब्रह्मचर्य-परायण भिक्षु स्थिर एवं स्वस्थ चित्त होकर संयम यात्रा के लिये उचित समय में धर्म-मर्यादा के अनुसार प्राप्त परिमित भोजन करे; मात्रा से अधिक आहार न करे ॥ ८ ॥
A celibate ascetic should eat his food, collected according to ascetic code, with calm and sound mind only at proper time and in prescribed limit to suit his ascetic pursuits; he should not eat in excessive quantity. (8)
विभूसं परिवज्जेज्जा, सरीर परिमण्डणं । बम्भचेररओ भिक्खू, सिंगारत्थं न धारए ॥ ९ ॥
ब्रह्मचर्यनिरत भिक्षु विभूषा का परित्याग कर, श्रृंगार के लिये शरीर को सजाए-सँवारे नहीं ॥ ९ ॥
A celibate ascetic should renounce rich adornment and should not embellish the body for the sake of glamour. (9)
सद्दे रूवे य गन्धे य, रसे फासे तहेव य । पंचविहे कामगुणे, निच्चसो परिवज्जए ॥ १० ॥
शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श इन पाँच प्रकार के कामगुणों को ब्रह्मचर्य-परायण भिक्षु सदा के लिये त्याग दे ॥ १० ॥
A celibate ascetic should abandon for ever the five sensual sources of carnal pleasure- (i) sound, (ii) sight (appearance), (iii) smell, (iv) taste, and (v) touch. (10)
आलओ थीजणाइण्णो, थीकहा य मणोरमा । संथवो चेव नारीणं, तासिं इन्दियदरिसणं ॥ ११ ॥ कुइयं रुइयं गीयं, हसियं भुत्तासियाणि य । पणीयं भत्तपाणं च, अइमायं पाणभोयणं ॥ १२ ॥ गत्तभूसणमिट्ठे च कामभोगा या दुज्जया । नरस्सऽत्तगवेसिस्स, विसं तालउडं जहा ॥ १३ ॥
(१) स्त्रियों से आकीर्ण - संसक्त स्थान ।
(२) मनोरम स्त्री - कथा ।
(३) स्त्रियों के साथ अति परिचय |
(४) उनकी इन्द्रियों पर दृष्टि जमाना ॥ ११ ॥
(५) स्त्रियों के कूजन, रुदन, हास्य, गीत आदि शब्दों को सुनना । (६) भुक्त भोगों और सह - अवस्थान - साथ रहने का स्मरण करना । (७) प्रणीत - रसयुक्त, पौष्टिक भोजन-पान करना ।
(८) अधिक मात्रा में आहार करना ॥ १२ ॥