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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
षोडश अध्ययन [194]
समं च संथवं थीहिं, संकहं च अभिक्खणं।
बंभचेररओ भिक्खू, निच्चसो परिवज्जए॥३॥ ब्रह्मचर्य में लीन रहने वाला भिक्षु स्त्रियों की प्रशंसा, उनके साथ अति परिचय तथा बार-बार वार्तालाप करना छोड़ दे॥३॥
An ascetic engrossed in perfect celibacy should refrain from praising women, intimacy with women and frequent conversation with women. (3)
अंगपच्चंग-संठाणं, चारुल्लविय-पेहियं ।
बंभचेररओ थीणं, चक्खुगिज्झं विवज्जए॥४॥ ब्रह्मचर्य में रत भिक्षु दृष्टिगोचर हुए स्त्रियों के अंग-प्रत्यंग, शरीर की रचना, वार्तालाप का ढंग तथा चितवन आदि को देखकर भी न देखे, अपनी दृष्टि तुरन्त वहाँ से हटा ले॥४॥
A celibacy practicing ascetic should avoid observing body, limbs, figure, gestures and way of talking of women even when visible. Instead, he should at once shift his eyes from there. (4)
कुइयं रुइयं गीयं, हसियं थणिय-कन्दियं।
बंभचेररओ थीणं, सोयगिझं विवज्जए॥५॥ ब्रह्मचारी मुनि स्त्रियों के कूजन, रुदन, गीत, हास्य, गर्जन, क्रन्दन आदि शब्द न सुने। यदि भिक्षु के कानों में वे शब्द पड़ भी जाएँ तो उन पर ध्यान न दे॥ ५ ॥
A celibate ascetic should avoid hearing sounds of screeching, wailing, singing, laughing, screaming, crying or weeping of women. If at all such sounds happen to fall on his ears, he should not pay any attention to them. (5)
हासं किडं रई दप्पं, सहसाऽवत्तासियाणि य।
बम्भचेररओ थीणं, नाणुचिन्ते कयाइ वि॥६॥ स्त्री के साथ गृहस्थ जीवन में किये हुये हास्य, क्रीड़ा, रति, दर्प-अभिमान आकस्मिक त्रास आदि का ब्रह्मचर्यनिरत भिक्षु मन में भी चिन्तन न करे॥६॥
A celibate ascetic should never recall and ruminate over the experiences he had as a householder with women including laughter, enjoyment, sex, their vanity and his spontaneous tricks to frighten and win them. (6)
पणीयं भत्तपाणं तु, खिप्पं मयविवड्ढणं।
बम्भचेररओ भिक्खू, निच्चसो परिवज्जए॥७॥ ब्रह्मचर्य में रत भिक्षु कामवासना को शीघ्र ही बढ़ाने वाले प्रणीत-रसयुक्त पौष्टिक भोजन का त्याग कर दे॥७॥
A celibate ascetic should renounce delicious, oil-rich and nourishing food and water, which fast inflames carnal desires. (7)