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[189] षोडश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
पंचम ब्रह्मचर्य समाधि-स्थान
सूत्र ७ - -जो मिट्टी की दीवार के अन्तर से, वस्त्र के परदे के अन्तर से, पक्की दीवार के अन्तर से स्त्रियों के कूजन, रोदन, गीत, हास्य, गर्जन, आक्रन्दन, विलाप - शब्दों को नहीं सुनता; वह निर्ग्रन्थ है |
(प्रश्न) ऐसा क्यों है ?
(उत्तर) आचार्य कहते हैं - मिट्टी की दीवार, परदे, पक्की दीवार के अन्तर से स्त्रियों के कूजन, रोदन, गायन, हास्य, गर्जन, क्रन्दन तथा विलाप के शब्दों को सुनने वाले ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ के ब्रह्मचर्य के विषय में शंका, कांक्षा, विचिकित्सा समुत्पन्न होती है, ब्रह्मचर्य भंग हो जाता है, उन्माद तथा दीर्घकालिक रोग व आतंक उत्पन्न हो जाते हैं, वह केवली प्ररूपित धर्म से भ्रष्ट हो जाता है।
इस कारण मिट्टी की कच्ची दीवार, कपड़े के परदे, पक्की दीवार के अन्तर से स्त्रियों के कूजन, रोदन, गीत, हास्य, गर्जन, आक्रन्दन, विलाप आदि शब्दों को निर्ग्रन्थ न सुने ।
Fifth condition of perfect celibacy
Maxim 7-He who does not hear sounds of screeching, wailing, singing, laughing, screaming, crying or weeping of women from behind a mud-wall or screen or brickwall, is an ascetic.
(Q.) Why is it so?
(Ans.) The preceptor explains-If a celibate ascetic hears sounds of screeching, wailing, singing, laughing, screaming, crying or weeping of women from behind a mudwall or screen or brick-wall, then doubt and disrespect for celibacy as well as desire of sexual indulgence germinate in his mind or his vow of celibacy is breached. Also he is inflicted by mental disorder, prolonged ailments and terror. Ultimately he falls from the religious path shown and established the omniscient (Kevali).
Therefore an ascetic should not hear sounds of screeching, wailing, singing, laughing, screaming, crying or weeping of women from behind a mud-wall or screen or brick
wall.
सूत्र ८ - नो निग्गन्थे पुव्वरयं, पुव्वकीलियं अणुसरित्ता हवड़, तं कहमिति चे ?
से निग्गन्थे ।
आयरियाह - निग्गन्थस्स खलु पुव्वरयं, पुव्वकीलियं अणुसरमाणस्स बम्भयारिस्स बंभचेरे संकावा, खावा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा ।
तम्हा खलु नो निग्गन्थे पुव्वरयं, पुव्वकीलियं अणुसरेज्जा ।
छठा ब्रह्मचर्य समाधि - स्थान
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सूत्र ८ – संयम ग्रहण करने से पूर्व की हुई रति और क्रीड़ा का अनुस्मरण जो नहीं करता; वह निर्ग्रन्थ है।
(प्रश्न) ऐसा क्यों है ?