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An, सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
षोडश अध्ययन [188 ]
चतुर्थ ब्रह्मचर्य समाधि-स्थान
सूत्र ६-जो स्त्रियों की मनोहर और मनोरम-मन को हरण करने वाली तथा मन में विकार उत्पन्न करने वाली इन्द्रियों को (टकटकी लगाकर) नहीं देखता और न ही उनके विषय में चिन्तन करता है; वह निर्ग्रन्थ है।
(प्रश्न) ऐसा क्यों है?
(उत्तर) आचार्य कहते हैं-स्त्रियों की मनोहर और मनोरम इन्द्रियों को देखने और उनके विषय में चिन्तन करने वाले ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ के ब्रह्मचर्य के विषय में शंका, कांक्षा और विचिकित्सा उत्पन्न होती है, ब्रह्मचर्य का विनाश हो जाता है, उन्माद तथा दीर्घकालिक रोग व आतंक उत्पन्न हो जाते हैं, वह केवली भगवान द्वारा प्ररूपित धर्म से भ्रष्ट हो जाता है।
इसलिए निर्ग्रन्थ स्त्रियों की मनोहर और मनोरम इन्द्रियों-अंगों को न तो देखे और न उनका चिन्तन ही करे। Fourth condition of perfect celibacy
Maxim 6-He who neither gapes avidly at beautiful, enchanting and provoking body. parts of women, nor ruminates upon them is an ascetic.
(Q.) Why is it so?
(Ans.) The preceptor explains-If a celibate ascetic gapes avidly at beautiful, enchanting and provoking body parts of women and ruminates upon them, then doubt and disrespect for celibacy as well as desire of sexual indulgence germinate in his mind or his vow of celibacy is breached. Also he is inflicted by mental disorder, prolonged ailments and terror. Ultimately he falls from the religious path shown and established the omniscient (Kevali).
Therefore a knotless ascetic should neither gape avidly at beautiful, enchanting and provoking body parts of women, nor ruminate upon them.
सूत्र ७-नो इत्थीणं कुड्डन्तरंसि वा, दूसन्तरंसि वा, भित्तन्तरंसि वा, कुइयसदं वा, रुइयसई वा, गीयसदं वा, हसियसई वा, थणियसदं वा, कन्दियसदं वा, विलवियसई वा, सुणेत्ता हवइ, से निग्गन्थे।
तं कहमिति चे?
आयरियाह-निग्गन्थस्स खलु इत्थीणं कुड्डन्तरंसि वा, दूसन्तरंसि वा, भित्तन्तरंसि वा, कुइयसदं वा, रुइयसदं वा, गीयसई वा, हसियसदं वा, थणियसई वा, कन्दियसदं वा, विलवियसदं वा, सुणेमाणस्स बंभयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा।
तम्हा खलु निग्गन्थे नो इत्थीणं कुड्डन्तरंसि वा, दूसन्तरंसि वा, भित्तन्तरंसि वा, कुइयसदं वा, रुइयसदं वा, गीयसई वा, हसियसई वा, थणियसई वा, कन्दियसई वा, विलवियसई वा सुणेमाणे विहरेज्जा।