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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
breached. Also he is inflicted by mental disorder, prolonged ailments and terror. Ultimately he falls from the religious path shown and established the omniscient (Kevali). Therefore a celibate should not indulge in erotic talks about women.
[187 ] षोडश अध्ययन
सूत्र ५ - नो इत्थीहिं सद्धिं सन्निसेज्जागए विहरित्ता हवड़, से निग्गन्थे ।
तं कहमिति चे ?
आयरियाह - निग्गन्थस्स खलु इत्थीहिं सद्धिं सन्निसेज्जागयस्स, बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायक हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ भंसेज्जा ।
तम्हा खलु नो निग्गन्थे इत्थीहिं सद्धिं सन्निसेज्जागए विहरेज्जा ।
तृतीय ब्रह्मचर्य समाधि - स्थान
सूत्र ५ – जो स्त्रियों के साथ एक आसन पर नहीं बैठता; वह निर्ग्रन्थ है। (प्रश्न) ऐसा क्यों है ?
(उत्तर) आचार्य कहते हैं- स्त्रियों के साथ एक आसन पर बैठने वाले ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ के ब्रह्मचर्य के विषय में शंका, कांक्षा, विचिकित्सा उत्पन्न होती है, ब्रह्मचर्य का नाश होता है, उन्माद और दीर्घकालीन रोग व आतंक उत्पन्न होते हैं, वह केवली प्रज्ञप्त धर्म से विचलित हो जाता है।
अतः निर्ग्रन्थ स्त्रियों के साथ एक आसन पर हरगिज न बैठे ।
Third condition of perfect celibacy
Maxim 5-He who does not sit on one seat with women is an ascetic. (Q.) Why is it so?
(Ans.) The preceptor explains-If a celibate ascetic sits on one seat with women, then doubt and disrespect for celibacy as well as desire of sexual indulgence germinate in his mind or his vow of celibacy is breached. Also he is inflicted by mental disorder, prolonged ailments and terror. Ultimately he falls from the religious path shown and established the omniscient (Kevali).
So an ascetic should never sit on one seat with women.
सूत्र ६ - नो इत्थीणं इन्दियाइं मणोहराई, मणोरमाई आलोइत्ता, निज्झाइत्ता हवइ, से निग्गन्थे । तं कहमिति चे ?
आयरियाह- निग्गन्थस्स खलु इत्थीणं इन्दियाइं मणोहराई, मणोरमाइं आलोएमाणस्स, निज्झायमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंके हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा ।
तम्हा खलु निग्गन्थे नो इत्थीणं इन्दियाई मणोहराई, मणोरमाइं आलोएज्जा, निज्झाएज्जा ।