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________________ [185 ] षोडश अध्ययन सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र सूत्र ३-इमे खलु ते थेरेहिं भगवन्तेहिं दस बंभचेरसमाहिठाणा पन्नत्ता, जे भिक्खू सोच्चा, निसम्म, संजमबहुले, संवरबहुले, समाहिबहुले, गुत्ते, गुत्तिन्दिए, गुत्तबंभयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा। तं जहाविवित्ताई सयणासणाइं सेविज्जा, से निग्गन्थे। नो-इत्थी-पसु-पण्डगसंसत्ताई सयणासणाई सेवित्ता हवइ, से निग्गन्थे। तं कहमिति चे? आयरियाह-निग्गन्थस्स खलु इत्थी-पसु-पण्डगसंसत्ताई सयणासणाई सेवमाणस्स बम्भयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा। . तम्हा नो इत्थि-पसु-पंडगसंसत्ताइ सयणासणाई सेवित्ता हवइ, से निग्गन्थे। -सूत्र ३-(सुधर्मा स्वामी-) स्थविर भगवन्तों ने ब्रह्मचर्य समाधि के ये दस स्थान बताये हैं, जिन्हें सुनकर, जिनके अर्थ का निर्णय कर भिक्षु संयम, संवर, समाधि से अधिकाधिक संपन्न हो-मन-वचन-काया का गोपन करे, इन्द्रियों को वश में रखे, ब्रह्मचर्य को सुरक्षित रखे तथा सदा अप्रमत्त रहकर विहार करे। वे दस स्थान इस प्रकार हैं. प्रथम ब्रह्मचर्य समाधि-स्थान जो विविक्त शयन आसन का सेवन करता है, वह निर्ग्रन्थ है। जो स्त्री, पशु, नपुंसक से संसक्त शयन आसन का सेवन-उपयोग नहीं करता, वह निर्ग्रन्थ है। (प्रश्न) ऐसा क्यों है? (उत्तर) आचार्य कहते हैं-स्त्री-पशु-नपुंसक से संस्पृष्ट-सेवित शयन और आसन का सेवन-उपयोग करने वाले ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ के ब्रह्मचर्य के विषय में शंका, कांक्षा (भोगेच्छा), विचिकित्सा उत्पन्न होती है, अथवा ब्रह्मचर्य भंग हो जाता है, या उन्माद अथवा दीर्घकालीन रोग और आतंक उत्पन्न हो जाते हैं, वह केवली भगवान द्वारा कहे हुये धर्म से भ्रष्ट हो जाता है। अत: जो स्त्री-पशु-नपुंसक से संस्पृष्ट शयन और आसन का सेवन नहीं करता, वह निर्ग्रन्थ है। Maxim 3–(Sudharma Swami-) The revered senior accomplished sages have, in their sermon, mentioned ten conditions for realization of perfect celibacy, by hearing and understanding the meaning of which an ascetic should become more and more accomplished in restrain, in obstructing karmic inflow and meditation. Consequently he should practice mental, vocal and physical restraint, control the senses and become perfect celibate to move about free of stupor (ever alert). These ten conditions are as follows
SR No.002494
Book TitleAgam 30 mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages726
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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