________________
[171] चतुर्दश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र in
माँस सहित पक्षी-गीध को अन्य माँसलोलुपी पक्षियों द्वारा पीड़ित किये जाते हुए तथा माँस रहित होने पर उसी पक्षी को निराकुल देखकर मैं भी माँस के समान इन सभी कामभोगों को त्यागकर तथा भोगरूप माँस से रहित होकर विचरण करूँगी॥ ४६॥
After watching a vulture holding a lump of flesh being tormented by other carnivorous birds and free of torments when getting rid of that flesh, (inspired as I am) I will also abandon these flesh-like pleasures and comforts and move about without flesh (mundane pleasures). (46)
गिद्धोवमे उ नच्चाणं, कामे संसारवड्ढणे।
उरगो सुवण्णपासे व, संकमाणो तणुं चरे॥४७॥ संसार-वृद्धि के हेतु कामभोगों को गीध के समान जानकर उनसे उसी प्रकार शंकित होकर चलना चाहिये जैसे सर्प गरुड़ से शंकित होकर चलता है॥ ४७॥
Considering indulgence in worldly pleasures, the enhancers of cycles of rebirth, to be like a vulture, one should move about being ever apprehensive, like a snake that moves about being apprehensive of an eagle. (47)
नागो व्व बन्धणं छित्ता, अप्पणो वसहिं वए।
एयं पत्थं महारायं !, उसुयारि त्ति मे सुयं ॥ ४८॥ बंधन को तोड़कर जिस प्रकार हाथी अपने नैसर्गिक निवास स्थान-वन में चला जाता है, उसी प्रकार हमको भी अपने वास्तविक स्थान-मोक्ष में चला जाना चाहिये। हे इषुकार महाराज ! ऐसा मैंने ज्ञानियों से श्रवण किया है॥४८॥
Breaking fetters an elephant goes to its natural habitat-the forest. In the same way we also should proceed to our natural abode-state of liberation. O King Ishukaar! I have heard that from the enlightened sages. (48)
. चइत्ता विउलं रज्जं, कामभोगो य दुच्चए।
निव्विसया निरामिसा, निन्नेहा निप्परिग्गहा॥४९॥ विशाल राज्य और दुस्त्याज्य कामभोगों का परित्याग कर वे राजा-रानी भी निर्विषय, निरामिष, नि:स्नेह और परिग्रहरहित हो गये॥ ४९॥
Renouncing large kingdom and difficult to abandon worldly pleasures that royal couple too abandoned sensual indulgences, meat eating, fondness and possession. (49)
सम्मं धम्म वियाणित्ता, चेच्चा कामगुणे वरे।
तवं पगिज्झऽहक्खायं, घोरं घोरपरक्कमा॥५०॥ सम्यक् प्रकार से धर्म को जानकर तथा प्राप्त श्रेष्ठ काम-गुणों को त्यागकर राजा-रानी दोनों ने ही यथोपदिष्ट उग्र तप को स्वीकार किया और संयम में घोर पराक्रम करने लगे॥५०॥
After rightly understanding religion and abandoning all available enticing pleasures and comforts, the king and the queen both accepted the prescribed rigorous austerities and started resolutely pursuing practice of ascetic-discipline. (50)