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In सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
चतुर्दश अध्ययन [172]
एवं ते कमसो बुद्धा, सव्वे धम्मपरायणा।
जन्म-मच्चुभउव्विग्गा, दुक्खस्सन्तगवेसिणो॥५१॥ इस प्रकार वे सब-छहों व्यक्ति बुद्ध और धर्मपरायण बने, जन्म एवं मरण से उद्विग्न हुये और दुःख परम्परा के अन्त की खोज में लग गये॥५१॥
This way all those six persons became enlightened and devoutly religious. Frightened by the cycles of rebirth, they involved themselves in pursuit of the end of the chain of miseries. (51)
सासणे विगयमोहाणं, पुव्विं भावणभाविया।
अचिरेणेव कालेण, दुक्खस्सन्तमुवागया॥५२॥ पूर्व-जन्म में जिन्होंने अनित्य आदि वैराग्य भावनाओं से अपनी आत्मा को भावित किया था, अब मोहरहित होकर तथा जिनशासन की शरण ग्रहण करके थोड़े ही समय में सभी दु:खों का अन्त कर दिया॥५२॥
In earlier birth they had enkindled their soul with detachment inducing contemplation including that about ethereality of life. Now getting free of fondness and taking refuge with the Jain order, they ended all miseries (attained liberation) in a short period. (52)
राया सह देवीए, महाणो य पुरोहिओ। माहणी दारगा चेव, सव्वे ते परिनिब्बुडे ॥५३॥
-त्ति बेमि। इषुकार राजा, कमलावती रानी, पुरोहित, पुरोहित-पत्नी तथा उनके दोनों पुत्र-ये सभी परिनिर्वृत्त-मुक्त हो गये॥ ५३॥
-ऐसा मैं कहता हूँ। King Ishukaar, queen Kamalavati, Priest Bhrigu, his wife and two sons, they all attained liberation. (53)
-So I say.
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