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in सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
चतुर्दश अध्ययन [170]
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As a bird imprisoned in a cage does not feel happy, so I also do not. Therefore, I will also follow the ascetic conduct after breaking all family relationship of love, having no possessions, getting free of all complexities as well as infatuation for mundane pleasures, and erasing all faults of covetousness and violence. (41)
दवग्गिणा जहा रणे, डज्झमाणेसु जन्तुसु।
अन्ने सत्ता पमोयन्ति, रागद्दोसवसं गया॥४२॥ जिस प्रकार वन में लगे दावानल में जलते हुये जन्तुओं को देखकर राग-देष के वशवर्ती होकर अन्य जीव प्रसन्न होते हैं॥ ४२ ॥
When in a forest some beasts are burning in a conflagration, other animals rejoice under the influence of attachment and aversion. (42)
एवमेव वयं मूढा, काम भोगेसु मुच्छिया।
डज्झमाणं न बुज्झामो, रागद्दोसऽग्गिणा जगं॥४३॥ उसी तरह कामभोगों में मूच्छित हम मूढ़ लोग भी राग-द्वेष की अग्नि में जलते हुए संसार को नहीं समझ रहे हैं॥ ४३॥
In the same way, obsessed with mundane pleasures, foolish people like us fail to appreciate (the impending doom of) the world of the living burning in the fire of attachment and aversion. (43)
भोगे भोच्चा वमित्ता य, लहुभूयविहारिणो।
आमोयमाणा गच्छन्ति, दिया कामकमा इव॥४४॥ भोगों को भोगकर तथा यथावसर उनका वमन करके आत्मगवेषी मुमुक्षु साधक वायु की भाँति लघुभूत होकर अप्रतिबद्ध विहार करते हैं। अपनी इच्छानुसार, पक्षियों के समान आत्मार्थी पुरुष आमोदपूर्वक विचरण करते हैं॥४४॥ .
Having enjoyed the pleasures and renouncing them at an opportune time, the selfseeking liberation aspirant becomes light as air and floats unrestrained. Like birds the self-seeking persons move about joyfully at will. (44) .
इमे य बद्धा फन्दन्ति, मम हत्थऽज्जमागया।
. वयं च सत्ता कामेसु, भविस्सामो जहा इमे॥ ४५ ॥ हमारे हाथ में आये हुये और विविध प्रकार से सुरक्षित किये गये ये कामभोग क्षणिक हैं। अभी हम इनमें आसक्त हैं। लेकिन जिस प्रकार पुरोहित परिवार इन्हें त्यागकर मुक्त हुआ है वैसे ही हम भी होंगे॥४५॥
The pleasures now in our hand and preserved in various ways; all these are transient. Still we are at present indulging in them. But as the family of Priest became free renouncing these, so we would also become. (45)
सामिसं कुललं दिस्स, बज्झमाणं निरामिसं। आमिसं सव्वमुज्झित्ता, विहरिस्सामि निरामिसा॥ ४६॥