________________
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
चतुर्दश अध्ययन [158]
जाएँ। इस कारण इषुकार नगर छोड़कर पास ही ब्रज गाँव में रहने लगे। साथ ही पुत्रों को दीक्षा से विरत करने के लिये यदा-कदा कहते रहते-"ये साधु ऊपर से भले दीखते हैं, पर बड़े भयंकर होते हैं। झोली में छुरी-काँटे रखते हैं। छोटे बच्चों को पकड़कर ले जाते हैं; आदि।"
माता-पिता की इस विपरीत शिक्षा से दोनों बालकों के मन में साधुओं के प्रति डर समा गया।
एक दिन दोनों भाई गाँव के बाहर एक विशाल छायादार वृक्ष के नीचे खेल रहे थे। कुछ साधुओं को आते देखा तो भयभीत होकर उसी वृक्ष पर चढ़कर पत्तों में छिप गये। साधु भी उसी वृक्ष के नीचे रुक गये। स्थान स्वच्छ कर भोजन करने लगे। उनका दयामय व्यवहार और सात्विक आहार को देखकर भृगु-पुत्रों का भय निकल गया, साधुओं के प्रति अधिक ऊहापोह करने से जातिस्मरण ज्ञान हो गया। घर आकर माता-पिता से दीक्षा की अनुमति माँगने लगे।
पिछले अध्ययन चित्र-संभूतीय में भोग और योग की दु:ख तथा सुखमय परिणति का. दिग्दर्शन कराया गया था; किन्तु प्रस्तुत अध्ययन वैराग्यपरक है।
वैदिक तथा अन्य तत्कालीन धार्मिक जगत् में प्रचलित परम्पराओं का बड़े ही तार्किक ढंग से निरसन करके श्रमणधर्म की मान्यताओं की स्थापना की गई है। इस रूप में यह अध्ययन तर्कप्रधान है। रानी कमलावती ने भी उस समय की प्रचलित राजकीय परम्परा कि 'अपुत्री के धन का स्वामी राजा होता है' को बड़े तर्कपूर्ण ढंग से निन्द्य सिद्ध कर अपने पति राजा इषुकार को भृगु पुरोहित का धन लेने से विरत करके संयम की ओर मोड़ा है। __यह तो परम सत्य है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने पूर्व-जन्म के संस्कारों को लेकर आता है और वर्तमान परिस्थितियों तथा पर्यावरण से भी प्रभावित होता है।
इस अध्ययन का प्रत्येक पात्र एक टाइप है, एक विचारधारा का प्रतिनिधित्व करता है। राजा इषुकार इस राजनीतिक विचारधारा का प्रतिनिधि है कि उत्तराधिकारी विहीन व्यक्ति की संपत्ति का स्वामी राजा होता है। रानी कमलावती भोग के कीचड़ में भी निर्लिप्त कमलिनी के समान है।
भृगु पुरोहित तत्कालीन ब्राह्मण तथा अन्य धार्मिक विचारधाराओं का प्रतिनिधि है तो उसकी पत्नी यशा कामभोगों का सुख लेना चाहती है; वह सामान्य नारी का प्रतिनिधित्व करती है। वह पति को संसार में ही फंसाये रखने का प्रयत्न करती है। ____ भृगु पुरोहित के दोनों पुत्र श्रमण विचारधारा के प्रतिनिधि हैं। पिता द्वारा प्रस्तुत विचारधाराओं का प्रमाण पुरस्सर निरसन करते हैं, हृदयस्पर्शी शब्दों में उचित उत्तर देते हैं। उनके उत्तरों से पिता का मोह भंग होता है और वह भी गृह-त्याग के लिए तत्पर हो जाता है, तब पुरोहित-पत्नी भी संयमी जीवन स्वीकार करने को उद्यत होती है।
रानी कमलावती अपने पति राजा इषुकार को विभिन्न तर्कों और दृष्टान्तों से समझाती है तथा स्वयं प्रव्रजित होने की इच्छा प्रगट करती है। उसके तथ्य पूर्ण वचनों से प्रभावित राजा इषुकार भी संयम ग्रहण कर लेते हैं।
इस प्रकार भृगु पुरोहित, पुरोहित-पत्नी यशा, उनके दोनों पुत्र और रानी कमलावती तथा राजा इषुकार छहों व्यक्ति श्रमण धर्म का पालन कर संसार से मुक्त होते हैं।
प्रस्तुत अध्ययन में ५३ गाथाए हैं।