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________________ [157] चतुर्दश अध्ययन सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र चतुर्दश अध्ययन : इषुकारीय | पूर्वालोक ___ प्रस्तुत अध्ययन का नाम इषुकारीय है। यद्यपि इस अध्ययन के प्रमुख पात्र भृगु पुरोहित के दोनों पुत्र हैं। उन्हीं से भृगु पुरोहित, उसकी पत्नी यशा प्रतिबोध पाते हैं और रानी कमलावती से प्रेरणा पाकर राजा इषुकार श्रमण बनकर सद्धर्म का आचरण करते हैं। किन्तु राजा की प्रमुखता होने के कारण इस अध्ययन का नाम इषुकारीय रखा गया है। राजा का नाम इषुकार है और नगर का नाम भी इषुकार ही है। कथासूत्र भृगु पुरोहित के पुत्रों को बाल्य अवस्था में जो वैराग्य हुआ, उसका कारण उनके पूर्व-जन्मों में निहित है। राजा इषुकार, रानी कमलावती, भृगु पुरोहित और पुरोहित-पत्नी यशा तथा उनके दोनों पुत्र-ये छहों जीव पूर्व-जन्मों में भी परस्पर सम्बन्धित रहे हैं। संक्षिप्त घटना क्रम इस प्रकार है पिछले अध्ययन 'चित्र-संभूतीय' में चार गोपाल-पुत्र साधुओं का वर्णन आया था, उनमें से दो तो चित्र-संभूत के रूप में वर्णित हो चुके हैं। शेष दो का सम्बन्ध इस अध्ययन से है। वे दोनों देव अपना देवायुष्य पूर्ण कर क्षिति-प्रतिष्ठित नगर में इभ्य-कुल में उत्पन्न हुए। वहाँ उनकी मित्रता अन्य चार श्रेष्ठि-पुत्रों से हुई। उन छहों ने एक बार स्थविरों से श्रेष्ठ धर्म सुना और दीक्षित हो गये। दीर्घकाल तक संयम का पालन करते रहे। आयु के अन्त में समाधिमरण किया और ये छहों सौधर्म स्वर्ग के पद्मगुल्म नामक विमान में चार पल्योपम की आयु वाले देव बने। देवायु पूर्ण होने पर एक देव तो इषुकार नगर का राजा इषुकार बना, दूसरा उसकी रानी कमलावती, तीसरा भृगु पुरोहित और चौथा उसकी पत्नी यशा के रूप में उत्पन्न हुआ। गोपाल-पुत्र दोनों देवों का आयुष्य अभी पूर्ण नहीं हुआ था, वे दोनों स्वर्ग में ही थे। भृगु पुरोहित और उनकी पत्नी यशा को दीर्घकाल तक पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई तो वे चिन्तित रहने लगे। पुत्र-प्राप्ति की उनकी उत्कट अभिलाषा थी। इधर देवलोक में रहे हुए देवों ने अपने भविष्य के विषय में विचार किया तो उन्हें ज्ञात हुआ कि 'हम भृगु पुरोहित के पुत्र बनेंगे।' तब उन्होंने सोचा-'मानव-भव में कहीं हम धर्म को न भूल जाएँ, इसके लिये पहले ही प्रबन्ध कर लेना चाहिये।' वे श्रमण वेष धारण कर भृगु पुरोहित के घर आये। पति-पत्नी दोनों ने श्रमणों की वन्दना की। श्रमणों ने धर्मोपदेश दिया। पति-पत्नी ने पुत्र-प्राप्ति की इच्छा व्यक्त की। श्रमण वेषधारी देवों ने कहा-"तुमको दो पुत्र प्राप्त होंगे; किन्तु वे लघु वय में ही दीक्षित हो जायेंगे, उन्हें रोकना मत।" इतना कहकर श्रमण वेषधारी देव चले गये। ग्वाल-पुत्र देवों का आयुष्य पूर्ण हुआ, उन्होंने भृगु पुरोहित के घर में जन्म लिया। पुत्र-प्राप्ति से पति-पत्नी के हृदय की कली खिल गई। साथ ही चिन्ता भी लग गई कि पुत्र कहीं दीक्षित न हो
SR No.002494
Book TitleAgam 30 mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages726
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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