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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
त्रयोदश अध्ययन [156]
You have no intention to abandon mundane pleasures. You are very much obsessed with sinful activity and possessions. I chattered uselessly for so long (made vain effort to enlighten you). O king! Now I am going, farewell to you. (33)
पंचालराया वि य बम्भदत्तो, साहुस्स तस्स वयणं अकाउं।
अणुत्तरे भुंजिय कामभोगे, अणुत्तरे सो नरए पविट्ठो॥ ३४॥ पांचाल देश का स्वामी चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त चित्र मुनि के वचनों का पालन न कर सका। अतः वह अनुत्तर उत्कृष्ट कामभोगों को भोगकर अनुत्तर-सातवें नरक में उत्पन्न हुआ॥ ३४॥
Emperor Brahmadutt, the ruler of Panchal country, could not do according to the counsel of ascetic Chitra. As such, after enjoying incomparable (best) mundane pleasures he was reborn in incomparable (worst) hell, the seventh hell. (34)
चित्तो वि कामेहिं विरत्तकामो, उदग्गचारित्त-तवो महेसी। अणुत्तरं संजम पालइत्ता, अणुत्तरं सिद्धिगई गओ॥ ३५॥
-त्ति बेमि। कामभोगों से विरक्त, उग्र चारित्री एवं तपस्वी महर्षि चित्र मुनि अनुत्तर-उत्कृष्ट संयम का पालन करके अनुत्तर-उत्कृष्ट-सिद्धगति को प्राप्त हुए॥ ३५॥
__-ऐसा मैं कहता हूँ। Detached from mundane pleasures, indulgent in rigorous ascetic conduct and austerities, great ascetic Chitra after observing extreme restraint attained incomparable status of perfection, the status of Siddha. (35)
-So I say.
विशेष स्पष्टीकरण गाथा १-'निदान'-तपश्चरण आदि के बदले में भोग-प्राप्ति के लिये किया जाने वाला दृढ़ संकल्प निदान है। यह आर्तध्यान का ही एक भेद है।
गाथा २-चूर्णि आदि ग्रन्थों के अनुसार गंगा प्रतिवर्ष अपना मार्ग बदलती रहती है। जो पहले का मार्ग छोड़ देती है, उस छोड़े हुए मार्ग की भूमि को मृतगंगा कहते हैं।
IMPORTANT NOTES
Purnakalam
Verse 1-Nidaan-It is a resolute wish to get worldly pleasures as a boon in exchange of observed austerities and other religious acts. It is a kind of aarta-dhyan (mental.state engrossed in sorrow and grief).
Verse 6-According to scriptures including commentaries (Churni) the Ganges shifts its course every year. The earlier course that is now land is called Mrit-ganga.