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[155 ] त्रयोदश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
I did not formally undergo critical review (pratikraman) of the wish. As a consequence I am obsessed with mundane pleasures in spite of my awareness of the religious tenets. (29)
नागो जहा पंकजलावसन्नो, दटुं थलं नाभिसमेइ तीरं।
एवं वयं कामगुणेसु गिद्धा, न भिक्खुणो मग्गमणुव्वयाणो॥३०॥ जिस प्रकार दल-दल में फंसा हुआ हाथी स्थल को देखकर भी किनारे पर नहीं पहुँच पाता, उसी प्रकार कामभोगों में आसक्त हम जैसे लोग भिक्षु-मार्ग (साधु धर्म) का अनुसरण नहीं कर पाते॥ ३०॥
As an elephant caught in a quagmire is unable to reach the shore in spite of seeing it, in the same way people like me, obsessed with mundane pleasure, cannot follow the ascetic path. (30)
अच्चेइ कालो तूरन्ति राइओ, न यावि भोगा पुरिसाण निच्चा।
उविच्च भोगा पुरिसं चयन्ति, दुमं जहा खीणफलं व पक्खी॥३१॥ (चित्र मुनि-) हे राजन् ! समय व्यतीत हो रहा है, रात्रियाँ भागती जा रही हैं। मानवीय भोग भी नित्य नहीं हैं। जिस प्रकार क्षीण फल वाले वृक्ष को पक्षी छोड़ देते हैं उसी तरह पुण्य क्षीण हो जाने पर मानव को कामभोग भी छोड़ देते हैं ॥ ३१॥
(Chitra ascetic-) O king! Time is passing, nights are running away and mundane pleasures are also not everlasting. As birds leave a tree devoid of fruits, in the same way the worldly pleasures abandon man, when the acquired merit-karmas are exhausted. (31)
जइ तं सि भोगे चइउं असत्तो, अज्जाइं कम्माइं करेहि रायं !
धम्मे ठिओ सव्वपयाणुकम्पी, तो होहिसि देवो इओ विउव्वी॥३२॥ हे राजन् ! यदि तुम कामभोगों को नहीं छोड़ सकते तो आर्यकर्म ही करो। धर्म में स्थित होकर सभी जीवों के प्रति दया का आचरण करो जिसके फलस्वरूप अगले जन्म में वैक्रिय शरीरधारी देव बन सकोगे ॥ ३२॥ ।
Oking! If you cannot renounce mundane pleasures, at least indulge in noble deeds. Establish yourself in religion and behave compassionately with all living beings, so that you could be reborn as a god with transmutable body (vaikriya sharira). (32)
न तुज्झ भोगे चइऊण बुद्धी, गिद्धो सि आरम्भ-परिग्गहेसु।
मोहं कओ एत्तिउ विप्पलावो, गच्छामि रायं ! आमन्तिओऽसि ॥३३॥ तुम्हारी बुद्धि भोगों को छोड़ने की नहीं है। तुम आरम्भ तथा परिग्रह में बहुत आसक्त हो। मैंने व्यर्थ ही इतने समय तक विप्रलाप (बकवास) किया-तुम्हें प्रबोधित करने का असफल प्रयत्न किया। हे राजन् ! अब मैं जा रहा हूँ॥ ३३॥