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[151] त्रयोदश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र ती
(चित्र मुनि-) मानव अपने किये हुए सभी कर्मों का फल भोगते हैं। कर्मों का फल भोगे बिना छुटकारा नहीं होता। मेरी आत्मा भी उत्तम अर्थों और कामों के फल से युक्त रही है॥ १०॥
(Chitra ascetic-) Men (being) have to bear fruits of all karmas acquired due to their deeds. There is no escape from the fruits of karmas without suffering them. My soul has also experienced the fruits of my virtuous deeds. (10)
जाणासि संभूय ! महाणुभाग, महिड्ढियं पुण्णफलोववेयं।
चित्तं पि जाणाहि तहेव रायं !, इड्ढी जुई तस्स वि य प्पभूया॥११॥ हे सम्भूत ! जिस प्रकार तुम स्वयं को महाभाग्यवान, महान् ऋद्धिधारी और पुण्यफल से युक्त समझते हो; उसी प्रकार चित्र को भी समझो। हे राजन् ! उसके पास भी प्रभूत ऋद्धि और द्युति रही है॥११॥
Sambhuta! As you consider yourself very fortunate, prosperous and endowed with the rewards of merit. Know the same about Chitra. O king! He too has been blessed with ample.prosperity and splendour. (11)
महत्थरूवा वयणप्पभया. गाहाणगीया नरसंघमज्झे।
जं भिक्खुणो सीलगुणोववेया, इहऽज्जयन्ते समणो म्हि जाओ॥१२॥ स्थविरों ने जन-समुदाय में अल्प अक्षर किन्तु महान् गंभीर अर्थ से युक्त गाथा कही थी जिसे शील और गुणों से सम्पन्न भिक्षु बड़े यत्न से प्राप्त करते हैं। उस गाथा को सुनकर मैं श्रमण बन गया ॥ १२ ॥
Amidst a gathering of men, senior ascetics (sthavirs) had recited a verse of few words but profound meaning, which is gained only with great effort by ascetics endowed with character and virtues. Having heard that verse I became an ascetic (shraman). (12)
उच्चोदए महु कक्के य बम्भे, पवेइया आवसहा य रम्मा।
इमं गिहं चित्तधणप्पभूयं, पसाहि पंचालगुणोववेयं ॥१३॥ (ब्रह्मदत्त-) हे चित्र मुनि! उच्च, उदय, मधु, कर्क और ब्रह्म-ये पाँच प्रकार के प्रमुख महल तथा अन्य भी महल हैं जो उत्तम कारीगरों के द्वारा निर्मित हैं। पांचाल देश के इन्द्रियों के मनोज्ञ विषयों युक्त तथा धन-धान्य से परिपूर्ण इन भवनों को स्वीकार करो॥१३॥
(Brahmadutt-) O Chitra ascetic! There are five kinds of excellent palaces hereUchcha, Udaya, Madhu, Kark and Brahma. Besides these there are other palaces also, constructed by best masons. Please accept these mansions of Panchal country, which are well equipped and fully provisioned to gratify all senses. (13)
नमुहि गीएहि य वाइएहिं, नारीजणाइं परिवारयन्तो।
भुंजाहि भोगाइ इमाइ भिक्खू!, मम रोयई पव्वज्जा हु दुक्खं ॥१४॥ हे भिक्षु ! नृत्य, गीत, वाद्यों के साथ युवती स्त्रियों से घिरे हुए इन भोगों को भोगो। मुझे तो यह रुचिकर लगते हैं, प्रव्रज्या तो निश्चित ही दुःखद है॥ १४॥
O ascetic! Surrounded by young maidens and with accompaniment of dance, song and music enjoy all these pleasures and merriment. To me all these are charming and exhilarating. Initiation is, indeed, agonizing. (14)