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तर सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
त्रयोदश अध्ययन [150]
आसिमो भायरा दो वि, अन्नमन्नवसाणुगा।
अन्नमन्नमणरत्ता, अन्नमन्नहिएसिणो॥५॥ __ (ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती-) इसके पूर्व हम दोनों भाई परस्पर एक-दूसरे का अनुगमन करने वाले, अनुरक्त और हित चाहने वाले थे॥ ५ ॥ ___ (Emperor Brahmadutt-) Before this birth, we two brothers used to accompany, love and benefit each other. (5)
दासा दसण्णे आसी, मिया कालिंजरे नगे।
हंसा मयंगतीरे य, सोवागा कासिभूमिए॥६॥ हम दोनों पहले दशार्ण देश में दास थे, फिर कालिंजर पर्वत पर हरिण, तदुपरान्त मृतगंगा के किनारे हंस और फिर काशी में चाण्डाल के रूप में उत्पन्न हुये थे॥६॥
First we were slaves in Dasharnapur, then antelopes on mountain Kaalinjar, after that swans on the shores of Mritaganga river and were later born as Chandaals in Kashi. (6)
देवा य देवलोगम्मि, आसि अम्हे महिड्ढिया।
इमा नो छट्ठिया जाई, अन्नमन्त्रेण जा विणा॥७॥ तदुपरान्त हम दोनों देवलोक में महान् ऋद्धिधारी देव थे। यह हमारा छठवाँ जन्म है, जिसमें हम दोनों पृथक्-पृथक् उत्पन्न हुए हैं॥ ७॥
Finally we were gods with great opulence in the divine realm (Dev Lok). This is our sixth birth and we are separately born. (7)
कम्मा नियाणप्पगडा, तुमे राय ! विचिन्तिया।
तेसिं फलविवागेण, विप्पओगमुवागया॥८॥ (चित्र मुनि-) हे राजन् ! तुमने कामभोगों की अभिलाषारूप निदान किया था। उस निदानकृत कर्मों के विपाक के कारण हम दोनों पृथक्-पृथक् उत्पन्न हुये हैं॥ ८॥
(Ascetic Chitra-) O king! Driven by the desire of mundane pleasures and comforts, you had made a wish. Due to fruition of the karmas acquired due to that wish we were born separately. (8)
सच्चसोयप्पगडा, कम्मा जाए पुरा कडा।
ते अज्ज परिभुंजामो, किं नु चित्ते वि से तहा॥९॥ (ब्रह्मदत्त-) हे चित्र मुनि! पूर्व-जन्म में किये गये सत्य और शुभ कर्मों का फल मैं अब इस जन्म में भोग रहा हूँ। क्या तुम भी ऐसा ही फल भोग रहे हो? ॥ ९॥
(Brahmadutt-) O ascetic Chitra! Now in this birth I am enjoying the fruits of karmas acquired due to truthful and noble deeds of the earlier birth. Are you also enjoying similar fruits? (9)
सव्वं सुचिण्णं सफलं नराणं, कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि। अत्थेहि कामेहि य उत्तमेहि, आया ममं पुण्णफलोववेए॥१०॥