________________
[149 ] त्रयोदश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
तेरसमं अज्झयणं : चित्तसम्भूइज्जं
त्रयोदश अध्ययन :चित्र-सम्भूतीय || Chapter-13 : CHITRA AND SAMBHUTA
जाईपराजिओ खलु, कासि नियाणं तु हत्थिणपुरम्मि।
चुलणीए बम्भदत्तो, उववन्नो पउमगुम्माओ॥१॥ जाति से तिरस्कृत (पराजित) सम्भूत मुनि ने हस्तिनापुर में चक्रवर्ती बनने का निदान किया। इसलिए पद्मगुल्म देव विमान से अपना आयुष्य पूर्ण कर चुलनी रानी की कुक्षि से उत्पन्न होकर वह ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती बना ॥ १॥
Insulted due to his caste, ascetic Sambhuta made a wish (nidaan) to be an emperor (ruler of the six regions of Bharat area). Therefore concluding his divine life-span in
Padmagulm celestial vehicle (vimaan) and taking birth from the womb of queen Chulani, ___he became emperor Brahmadutt. (1)
कम्पिल्ले सम्भूओ, चित्तो पुण जाओ पुरिमतालम्मि।
सेट्ठिकुलम्मि विसाले, धम्म सोऊण पव्वइओ॥२॥ काम्पिल्य नगर में संभूत का जीव उत्पन्न हुआ और चित्र मुनि का जीव पुरिमताल नगर में श्रेष्ठि के घर में उत्पन्न हुआ। वहाँ स्थविरों से धर्म सुनकर वह प्रव्रजित हो गया॥ २॥
The soul of ascetic Sambhuta was born in Kampilya city and the soul of ascetic Chitra was born in the house of a merchant in Purimataal city. There, after listening to the sermon of senior sages he got initiated. (2)
कम्पिल्लम्मि य नयरे, समागया दो वि चित्तसम्भूया।
सुहदुक्खफलविवागं, कहेन्ति ते एक्कमेक्कस्स॥३॥ एक बार चित्र और सम्भूत दोनों काम्पिल्य नगर में मिले। दोनों ने एक-दूसरे से सुख-दु:खरूप कर्मफल विपाक के सम्बन्ध में वार्ता की॥३॥
Once Chitra and Sambhuta met in Kampilya city and talked about experiences of pleasure and pain due to fruition of karmas. (3)
चक्कवट्टी महिड्ढीओ, बम्भदत्तो महायसो।
भायरं बहुमाणेणं, इमं वयणमब्बवी-॥४॥ महायशस्वी और महाऋद्धि से सम्पन्न ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती (संभूत मुनि का जीव) ने बहुमानपूर्वक अपने भाई से कहा- ॥ ४॥
Endowed with enormous fame and opulence, emperor Brahmadutt (the soul of ascetic Sambhuta) said with great respect to his brother-(4)