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[137] द्वादश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
(मुनि)-इन्द्रियों का दमन करने वाले श्रेष्ठ पुरुष पृथ्वीकाय आदि छह कायों के जीवों की हिंसा नहीं करते, असत्य नहीं बोलते, अदत्तादान नहीं करते, परिग्रह, स्त्री, मान और माया के स्वरूप को जानकर उनका परित्याग करते हैं॥४१॥
(The ascetic-) Exalted persons, who have subdued senses, never harm any living being of six classes including earth-bodied beings, never speak a lie, never take what is not given and renounce possessions, women, conceit and deceit after understanding their true form. (41)
सुसंवुडो पंचहिं संवरेहिं, इह जीवियं अणवकंखमाणो।
वोसट्ठकाओ सुइचत्तदेहो, महाजयं जयई जन्नसिट्ठ॥४२॥ जो पाँचों प्रकार के संवरों से संवृत्त होते हैं, जीवन की आकांक्षा और शरीर की आसक्ति का त्याग करते हैं, विदेहभाव में रहते हैं, पवित्र हैं; ऐसे वासनाओं पर विजय पाने वाले महाजयी पुरुष श्रेष्ठ यज्ञ करते हैं। ४२॥
Those who are well protected by all five kinds of preventions of karma-inflow, who renounce the desire for life and obsession for their own body, who live in the state of dissociation from the body, who are pure and pious; such great victors, who have conquered lust, are performers of the best sacrifice. (42)
के ते जोई ? के व ते जोइठाणे ?, का ते सुया ? किं व ते कारिसंगं ? .
एहा य ते कयरा सन्ति ? भिक्खू !, कयरेण होमेण हुणासि जोइं ?॥४३॥ - (रुद्रदेव)-हे भिक्षु ! आपकी ज्योति (अग्नि) कौन-सी है? ज्योति-स्थान क्या है? घृत आदि डालने की कड़छियाँ कौन-सी हैं? अग्नि को दीपित वाले कण्डे क्या हैं? आपका ईंधन और शांति-पाठ क्या है? और किस होम से आप अग्नि को प्रज्वलित करते हैं-जलाते हैं। ४३ ॥
(Rudradeva-) O ascetic! Which is your fire? What is your fire-place? Which are your sacrificial ladles for pouring butter-oil? What are cow-dung discs to lit fire? What is your fuel? And what is your peace-chant? What oblation do you offer to intensify the fire? (43)
तवो जोई जीवो जोइठाणं, जोगा सुया सरीरं कारिसंग।
कम्म एहा संजमजोग सन्ती, होमं हुणामी इसिणं पसत्थं ॥४४॥ (मुनि)-तप ज्योति है। जीवात्मा ज्योति-स्थान है। मन-वचन-काया-ये तीनों कड़छियाँ हैं। शरीर कण्डे हैं। कर्म ईंधन है। संयम की प्रवृत्ति शान्ति-पाठ है। मैं ऐसा ऋषियों द्वारा प्रशस्त यज्ञ करता हूँ॥४४॥
(The ascetic-)Penance is my fire, soul is fire-place, mind-speech-body are ladles, body is cow-dung disc, karmas are fuel and practice of restraint is my peace-chant. I perform such sacrifice that has been praised by sages. (44)