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[131] द्वादश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
(Yaksha -) Although Brahmin, whose life is maligned with vices like anger, conceit, violence, falsehood, covetousness, they are lowly in terms of learning and caste; they, in fact, are areas of sin. (14)
तुब्भेत्थ भो! भारधरा गिराणं, अळं न जाणाह अहिज्ज वेए।
उच्चावयाइं मुणिणो चरन्ति, ताई तु खेत्ताई सुपेसलाइं॥१५॥ हे विप्रो ! तुम केवल वेद आदि वाणी का बोझा ही ढो रहे हो। वेदों को पढ़कर भी उनका अर्थ नहीं समझते हो। स्वयं पाचन (भोजन बनाकर) न करके जो संयमी भिक्षु समभावपूर्वक ऊँचे-नीचे, छोटे-बड़े घरों से प्राप्त भिक्षा द्वारा अपनी संयम यात्रा का निर्वाह करते हैं, वे ही वास्तविक पुण्य क्षेत्र हैं।॥ १५ ॥
O Brahmins! You only carry the burden of the words of scriptures including the Vedas. Although.you have read the Vedas, you still do not understand their meaning. The ascetics who are not cooking food themselves and subsisting on alms sought from high and low or large and small families to continue their journey of restraints, only they are the real fields of merit. (15)
अज्झावयाणं पडिकूलभासी, पभाससे किंतु सगासि अम्हं।
अवि एवं विणस्सउ अन्नपाणं, न य णं दहामु तुमं नियण्ठा॥१६॥ (रुद्रदेव के छात्र) हमारे अध्यापकों के प्रति ऐसे प्रतिकूल वचन बोलने वाले निर्ग्रन्थ ! तू क्यों बढ़-बढ़कर बोल रहा है? .यह भोजन, चाहे सड़-गलकर नष्ट हो जाए, किन्तु तुमको बिलकुल भी • नहीं देंगे॥ १६॥
(Pupils of Rudradeva-) O Knotless Ascetic! How dare you speak such nasty words against our teachers? Why you are boasting so much? Even if this food rots and is wasted, we will not give it to you at all. (16)
समिईहि मज्झं सुसमाहियस्स, गुत्तीहि गुत्तस्स जिइन्दियस्स।
जइ मे न दाहित्थ अहेसणिज्ज, किमज्ज जन्नाण लहित्थ लाहं ? ॥१७॥ (यक्ष)-मैं पाँच समितियों से समाहित तथा तीन गुप्तियों से गुप्त और जितेन्द्रिय हूँ। यदि मुझे यह निर्दोष भोजन नहीं दोगे तो इस यज्ञ का लाभ तुम्हें कैसे मिलेगा? ॥ १७॥
(Yaksha -) I am composed by five circumspections and restrained by three restraints and have subdued to my senses. If you do not give me this faultless food, how can you get the benefits of this yajna? (17)
के एत्थ खत्ता उवजोइया वा, अज्झावया वा सह खण्डिएहिं।
एयं खु दण्डेण फलेण हन्ता, कण्ठम्मि घेत्तूण खलेज्ज जो णं ?॥१८॥ (रुद्रदेव)-यहाँ क्षत्रिय, रसोइया, अध्यापक, छात्र आदि कोई है जो इस निर्ग्रन्थ को डण्डे से, काष्ट के फलक से पीटकर और गला पकड़कर निकाल दे॥ १८ ॥