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[121] द्वादश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
जैन श्रमण तो क्षमावीर होते ही हैं, क्षमा कर दिया। साथ ही सोमदत्त की जिज्ञासा पर धर्म का उपदेश भी दिया। उपदेश से प्रतिबद्ध होकर सोमदत्त दीक्षित हो गया, तपस्या करने लगा, लेकिन जात्यभिमान और रूपमद करता ही रहा। अन्त समय तक भी वह जाति-मद के चंगुल से छूट नहीं सका। चारित्र-पालन के परिणामस्वरूप आयु पूर्ण कर वह देव बना।
देवायु पूर्ण कर वह मृतगंगा के किनारे हरिकेश गोत्रीय चाण्डालों के अधिपति 'बलकोट्ट' नामक चाण्डाल की पत्नी गौरी के गर्भ से पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ। उसका नाम 'बल' रखा गया।
यही बालक आगे चलकर हारकशबल कहलाया। ।
पूर्व-जन्म में किये गये जातिमद और रूपमद के कारण उसका जन्म चाण्डाल-कुल में हुआ तथा उसका शरीर भी काला-कलूटा, बेडौल और कुरूप था। ज्यों-ज्यों वह बड़ा हुआ, उसके स्वभाव में उग्रता बढ़ती गई। क्रोधी, झगड़ालू और कटुभाषी बन गया। शरीर की कुरूपता और स्वभाव की उग्रता-करेला और नीम चढ़ा वाली कहावत चरितार्थ हो गई। बस्ती के सभी लोगों, साथी बालकों और यहाँ तक कि माता-पिता की आँखों में भी कण्टक-सा खटकने लगा।
एक बार बस्ती के सभी लोग उद्यान में बसन्तोत्सव मना रहे थे। बालक खेल रहे थे। हरिकेशबल ने उनके साथ खेलने का प्रयत्न किया तो खेल में किसी बात पर क्रुद्ध होकर वह अपशब्द बोलने लगा, गाली बकने लगा तो अन्य बालकों ने उसे निकाल दिया। वह उपेक्षित-सा एक ओर बैठ गया।
तभी एक विषधर सर्प निकला। लोगों ने उसे बैंत-लाठियों से उसी क्षण मार दिया। कुछ समय बाद एक निर्विष सर्प (दमही-अलसिया) निकला। उसे देखकर लोगों ने कहा-"अरे यह तो विषरहित है, किसी को काटता नहीं। इसे मारने से क्या लाभ? पकड़कर दूर छोड़ आओ।" और कुछ लोग उस निर्विष सर्प को दूर छोड़कर पुनः उत्सव-क्रीड़ा में निमग्न हो गये। ___ हरिकेशबल भी इस घटना को देख रहा था। उसका विचार-प्रवाह बहने लगा-'प्राणी अपने ही दोषों के कारण दुःख पाता है, समाज का तिरस्कार सहता है। लोगों ने विषधर सर्प को मार दिया
और विषहीन को नहीं मारा। मैं भी अपनी कड़वी जुबान और दुर्व्यवहार के कारण उपेक्षित बना हुआ हूँ। यदि इन दोषों को छोड़ दूं तो सबका प्रिय बन जाऊँ। लेकिन मुझमें ये दोष आये ही क्यों? इसका क्या कारण है.........।' ___यों सोचते-सोचते हरिकेशबल का चिन्तन गहरा हुआ। उसे जातिस्मरण ज्ञान हो गया। पूर्व के दो जन्म (सोमदत्त विप्र और स्वर्ग के देवभव) उसके स्मृति-पटल पर चलचित्र के समान तैर गये। ___उसी क्षण उसे संसार और सांसारिक सम्बन्धों तथा भोगोपभोगों से विरक्ति हो गई, निम्न कुल में जन्म होने का तथा कुरूपता एवं उग्र स्वभावी होने का कारण भी ज्ञात हो गया। ___ वह वहाँ से उठकर चल दिया। किसी श्रमण के पास पहुँचकर भागवती दीक्षा ग्रहण कर ली। शुद्ध श्रामण्य-मुनिधर्म का पालन करने लगा। चाण्डाल हरिकेशबल अब मुनि हरिकेशबल बनकर ग्रामानुग्राम विहार करने लगे। उनकी तपश्चर्या इतनी उच्च कोटि पर पहुँच गई कि देवता भी उन्हें नमन करने लगे, पूज्य और आराध्य मानने लगे तथा सेवा में तत्पर रहने लगे।