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________________ सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र द्वादश अध्ययन [120] द्वादश अध्ययन : हरिकेशीय पूर्वालोक प्रस्तुत अध्ययन का नाम इसके प्रमुख पात्र हरिकेशबल के नाम पर प्रसिद्ध हुआ है। पिछले बहुश्रुत पूजा अध्ययन में बहुश्रुत की तेजस्विता का वर्णन किया गया है और प्रस्तुत अध्ययन में बहुश्रुत तथा शुद्ध श्रमणधर्म का पालन करने वाले मुनि हरिकेशबल की तेजस्विता और विशिष्ट प्रभावशालिता का वर्णन बड़े ही रोमांचक और चमत्कारी ढंग से प्रतिपादित हुआ है। ____ मुनि हरिकेशबल के चाण्डाल कुल में जन्म, पूर्व-जन्म तथा इस जन्म की विशिष्ट घटनाएँ, श्रमणत्व धारण और पालन आदि के सम्बन्ध में जिज्ञासा होनी भी स्वाभाविक है और उनकी तेजस्विता के लिये इन घटनाओं को जानना भी आवश्यक है। कथासूत्र संक्षेप में हरिकेशबल से संबंधित घटनाएँ इस प्रकार हैं___ मथुरा-नरेश राजा शंख संसार से विरक्त हुये। उन्होंने उग्र तप किया। तप के प्रभाव से अनेक विशिष्ट लब्धियाँ उन्हें प्राप्त हो गईं। ग्रामानुग्राम विचरण करते हुये वे हस्तिनापुर पधारे। भिक्षा के लिये नगर की ओर चले। नगर-प्रवेश के दो मार्ग थे। उनमें एक मार्ग पर लोगों को आते-जाते न देखकर शंख-मुनि विचार में पड़ गये। एक व्यक्ति को उसके घर के बाह्य भाग में बैठा देखकर उससे नगर-प्रवेश का मार्ग पूछा। वह व्यक्ति ब्राह्मण सोमदत्त था। सोमदत्त जात्यभिमान से ग्रसित और श्रमणद्वेषी था। उसने गलत मार्ग बताते हुये कहा-“यह मार्ग निकट का है। आप शीघ्र ही नगर में पहुँच जायेंगे।" तपस्वी मुनि उसी मार्ग पर चल दिये। वास्तविकता यह थी कि उस मार्ग का नाम 'हुताशन' अथवा 'हुतवह रथ्या' था। वह मार्ग अग्नि की भाँति गरम रहता था, उस पर चलना कठिन था। ग्रीष्मकाल में तो वह तपे हुये तवे की भाँति जलता था। सोमदत्त ने शंख मुनि को वह मार्ग द्वेषवश बताया था, लेकिन जब उसने देखा कि मुनि तो गजगति से उस मार्ग पर शांतिपूर्वक चले जा रहे हैं तो वह चकित हुआ। उसने स्वयं उस मार्ग पर चलकर देखा तो उसे मार्ग हिम के समान शीतल लगा। वह समझ गया कि ये विशिष्ट लब्धिधारी मुनि हैं, इनके तप:प्रभाव से यह उष्ण मार्ग शीतल हो गया है। ___ चमत्कार को नमस्कार करता हुआ बाह्मण सोमदत्त शीघ्र ही शंख मुनि के पास पहुँचा और अपने अपराध की क्षमा माँगने लगा।
SR No.002494
Book TitleAgam 30 mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages726
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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