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________________ तर, सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र द्वादश अध्ययन [122] ग्रामानुग्राम विहार करते हुये वे वाराणसी नगरी में आये। उद्यान में अवस्थित यक्ष-मन्दिर में मासखमण की प्रतिज्ञा धारण कर कायोत्सर्ग में लीन हो गये। उनके उत्कट तप के प्रभाव से प्रभावित यक्षराज तिन्दुक उन्हें अपना आराध्य मानने लगा। __किसी दिन नगर-नरेश कौशलिक की पुत्री भद्रा अपनी सखियों सहित. यक्ष की पूजा के लिये यक्ष-मन्दिर में आई। यक्ष-प्रतिमा की प्रदक्षिणा करते हुये उसकी दृष्टि एक वृक्ष के नीचे खड़े कायोत्सर्ग-लीन मुनि हरिकेशबल पर पड़ी। मुनि की कुरूपता, मलिन शरीर और वस्त्रों को देखकर राजकुमारी भद्रा का हृदय घृणा से भर गया। ग्लानि में भरकर उसने मुनि के मुँह पर थूक दिया। ___अपने आराध्य मुनि का यह अपमान तिन्दुक यक्ष न सह सका। तुरन्त राजकुमारी भद्रा के शरीर में प्रविष्ट हो गया। यक्षाविष्ट राजकुमारी भद्रा अण्ट-शण्ट बोलती और अनर्गल चेष्टाएँ करती हुई बेहोश हो गई। सखियाँ किसी तरह उसे राजमहल में ले गई राजा ने पुत्री के बहुत उपचार कराये किन्तु कोई लाभ न हुआ। राजा अपनी पुत्री के जीवन के लिये चिन्तित हो गया। तब राजकुमारी के शरीर में प्रविष्ट यक्ष ने कहा ___ "राजन्! तुम कितने भी उपचार करा लो, कोई लाभ नहीं होगा। इसने मेरे मन्दिर में ध्यानलीन एक घोर तपस्वी महामुनि का अपमान कर दिया है। उसका फल चखाने के लिये ही मैंने इसकी यह दशा की है। यदि तुम उन महामुनि के साथ इसका विवाह करो तो मैं इसे छोड़ सकता हूँ अन्यथा इसे जीवित नहीं रहने दूंगा।" ___ पिता को पुत्री प्रिय होती ही है। राजा ने यक्ष की शर्त स्वीकार कर ली। यक्ष राजकुमारी के शरीर से निकल गया। राजकुमारी स्वस्थ हो गई। राजा अपनी पुत्री को साथ लेकर तिन्दुक यक्ष के आयतन में पहुँचा। पिता ने अपनी पुत्री के अपराध के लिये क्षमा माँगी और करबद्ध होकर तथा भद्रा को सामने करके प्रार्थना की-"भगवन् ! इस कन्या ने आपका बहुत बड़ा अपराध किया है। इसका प्रायश्चित्त यही है कि आप इसके साथ पाणिग्रहण करें और यह कन्या परिचारिका के रूप में आपकी सेवा करे।" ___ मुनि हरिकेशबल ने कहा-“राजन् ! न तो इस कन्या ने मेरा कोई अपराध किया है और न मेरा अपमान ही हुआ है। पाणिग्रहण की बात तो बहुत दूर, मैं ब्रह्मचर्य महाव्रत का पालन करने वाला हूँ। जहाँ स्त्रियों का आवागमन हो, वहाँ मैं ठहर भी नहीं सकता। तुम अपनी पुत्री को ले जाओ। मुझे इससे कोई प्रयोजन नहीं है।" राजा ने कन्या को यक्ष-प्रकोप से मुक्त करने की मुनि से प्रार्थना की; लेकिन मुनि मौन हो गये। तब यक्ष ने ही कहा-"मुनि तुम्हें स्वीकार नहीं करते तो तुम चली जाओ।" राजा अपनी पुत्री के साथ वापस लौट आया।' १. (विशेष-ऐसा उल्लेख भी मिलता है कि राजा अपनी पुत्री को वहीं छोड़कर चला आता है। यक्ष मुनि हरिकेशबल का रूप रखकर राजकुमारी के साथ पाणिग्रहण करता है। प्रातः मुनि से सच्चाई जानकर राजकुमारी वापस राजमहल लौट जाती है। तदुपरान्त ऋषि-पत्नी मानकर उसका विवाह याज्ञिक रुद्रदेव के साथ होता है।)
SR No.002494
Book TitleAgam 30 mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages726
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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