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In सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
एकादश अध्ययन [110]
एकादश अध्ययन : बहुश्रुत पूजा |
पूर्वालोक
प्रस्तुत अध्ययन का नाम बहुश्रुत पूजा है। बहुश्रुत का अभिप्राय विशिष्ट ज्ञानियों से है। इस अध्ययन में ज्ञानियों की श्रेष्ठता और उनकी महत्ता का वर्णन किया गया है। पूजा का अभिप्राय यहाँ बहुश्रुतों के प्रति बहुमान, भक्ति और मानसिक, वाचिक, कायिक विनम्रता है।
पिछले दसवें अध्ययन द्रुमपत्रक में साधक को अप्रमाद की प्रेरणा दी गई थी और प्रस्तुत अध्ययन में ज्ञानियों की महिमा का उल्लेख है।
बहुश्रुतों की तीन कोटियाँ मानी गई हैं-(१) जघन्य-कम से कम आचार प्रकल्प और निशीथ सूत्र का ज्ञाता हो, (२) मध्यम-वृहत्कल्प और व्यवहारसूत्र का ज्ञाता हो, और (३) उत्कृष्टनौवें पूर्व की तीन वस्तुओं अथवा दसवें पूर्व का ज्ञाता हो; और १४ पूर्व का धारी सर्वोत्कृष्ट बहुश्रुत होता है।
प्रस्तुत अध्ययन में सर्वप्रथम अबहुश्रुतों के स्वरूप का वर्णन करके बहुश्रुत होने के कारणों का उल्लेख किया गया है। इसका अभिप्राय साधक को बहुश्रुत बनने का दिशा-निर्देश देना है। ___ आगे अविनीतता के १४ लक्षण दिये गये हैं जो बहुश्रुत बनने में बाधक हैं; साथ ही बहुश्रुत बनने के साधक १५ गुणों का उल्लेख भी किया गया है। तदुपरान्त बहुश्रुत को सूर्य, चन्द्र, कंथक अश्व आदि भौतिक जगत् की १५ विशिष्ट वस्तुओं से उपमित करके ज्ञान और ज्ञानी की महत्ता का प्रेरक शब्दों में प्रतिपादन किया गया है।
और अन्त में बहुश्रुतता की फलश्रुति मोक्षगामिता बताई गई है। यह सम्पूर्ण अध्ययन ज्ञान की महत्ता को प्रतिस्थापित करता है। प्रस्तुत अध्ययन में ३२ गाथाएँ हैं।