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[109] दशम अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
तिण्णो हु सि अण्णवं महं, किं पुण चिट्ठसि तीरमागओ।
अभितुर पारं गमित्तए, समयं गोयम ! मा पमायए॥३४॥ तुम संसाररूपी महासागर को पार कर आये हो; किन्तु अब किनारे पर क्यों खड़े रह गये हो? इसे पार करने की शीघ्रता करो। हे गौतम ! क्षण मात्र का भी प्रमाद मत करो॥ ३४॥
You have swum across the great ocean of cycles of rebirth; why you are still marooned so near the shore? Cross it soon and step on the other side. Gautam! Be not negligent even for a moment. (34)
अकलेवरसेणिमुस्सिया, सिद्धिं गोयम लोयं गच्छसि।
खेमं च सिवं अणुत्तरं, समयं गोयम ! मा पमायए॥३५॥ तुम अशरीरी सिद्ध पद तक पहुँचाने वाली क्षपक श्रेणी पर आरूढ़ होकर क्षेम अनुत्तर शिव रूप सिद्ध लोक को प्राप्त करोगे। इसलिये हे गौतम! क्षण मात्र का भी प्रमाद मत करो॥ ३५ ॥
You are destined to reach the supreme and beatific realm of perfection (Siddha Lok) by stepping on the trail of destruction of karinas (kshapak shreni) that leads to disembodied perfect state of emancipation. So, Gautam! Be not negligent even for a moment. (35)
बुद्धे परिनिव्वुडे चरे, गामगए नगरे व संजए।
सन्तिमग्गं च बूहए, समयं गोयम ! मा पमायए॥३६॥ तत्त्वज्ञ, परिनिर्वृत्त-उपशांत और संयम में निरत होकर तुम ग्राम-नगरों में विचरण करके शांति मार्ग को बढ़ाओ, उसका प्रचार-प्रसार करो। हे गौतम! क्षण मात्र का भी प्रमाद मत करो॥ ३६॥
After being aware of fundamentals, perfectly serene and engrossed in self-restraint you should become itinerant. Wandering in villages and cities you should propagate and popularize the path of peace. As such, Gautam ! Be not negligent even for a moment. (36).
बुद्धस्स निसम्म भासियं, सुकहियमट्ठपओवसोहियं । रागं दोसं च छिन्दिया, सिद्धिगई गए गोयमे॥ ३७॥
-त्ति बेमि। अर्थ और पदों से सुशोभित, सुकथित सर्वज्ञ भगवान महावीर की वाणी को सुनकर तथा राग-द्वेष का छेदन कर गौतम गणधर सिद्ध गति में गये॥ ३७॥
-ऐसा मैं कहता हूँ। Having heard the lucid sermon of omniscient Bhagavan Mahavir, adorned with meaningful verses and destroying attachment and aversion, Gautam Ganadhar attained the state of liberation. (37)
-So I say.