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[107] दशम अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
Your body is getting exhausted, hairs are turning white and competence of tongue (tasting and speaking) is deteriorating. Therefore, Gautam! Be not negligent even for a moment. (24)
परिजूरइ ते सरीरयं, केसा पण्डुरया हवन्ति ते।
से फासबले य हायई, समयं गोयम ! मा पमायए॥२५॥ तुम्हारा शरीर जर्जरित हो रहा है, केश श्वेत हो रहे हैं, कायबल क्षीण होता जा रहा है। हे गौतम ! क्षण मात्र का भी प्रमाद मत करो॥ २५ ॥
Your body is getting atrophied, hairs are turning whitish and physical strength is reducing. Therefore, Gautam! Be not negligent even for a moment. (25)
परिजूरइ ते सरीरयं, केसा पण्डुरया हवन्ति ते।
से सव्वबले य हायई, समयं गोयम ! मा पमायए॥२६॥ - तुम्हारा शरीर जीर्ण हो रहा है, केश धवल हो रहे हैं, सभी प्रकार के बल क्षीण हो रहे हैं। हे . गौतम! क्षण मात्र का भी प्रमाद मत करो॥ २६ ॥ • Your body is weakening, your hairs are turning white and every kind of strength is on the decline. Therefore, Gautam! Be not negligent even for a moment. (26)
__ अरई गण्डं विसूइया, आयंका विविहा फुसन्ति ते।
विवडइ विद्धंसइ ते सरीरयं, समयं गोयम ! मा पमायए॥२७॥ वात या पित्त विकार से होने वाला चित्त का उद्वेग, फोडा. विसचिका (हैजा-वमन) आदि विविध प्रकार के शीघ्रघाती रोगों से तम्हारा शरीर गिर जाता है. विध्वस्त हो जाता है। अतः हे गौतम! क्षणं मात्र का भी प्रमाद मत करो॥ २७॥
Dementia, boils, cholera and other mortal diseases of many kinds are wrecking and destroying your body. Therefore, Gautam! Be not negligent even for a moment. (27)
. वोछिन्द सिणेहमप्पणो, कुमुयं सारइयं व पाणियं।
से सव्वसिणेहवज्जिए, समयं गोयम ! मा पमायए॥२८॥ - शरद् ऋतु का चन्द्र विकासी कमल जैसे जल से लिप्त नहीं होता उसी प्रकार तुम भी अपने स्नेह बन्धन को तोड़ दो, उसमें लिप्त मत बनो और फिर सभी प्रकार के स्नेहों को त्याग दो। हे गौतम! इस कार्य में-स्नेह-बन्धनों को तोड़ने में क्षण मात्र का भी प्रमाद मत करो॥ २८॥
As the autumn lotus, blooming in moonlight, is unaffected by water, in the same way shatter your bondage of fondness. Do not get caught in affection and break all ties of attachment. Gautam! Be not negligent even for a moment. (28)
चिच्चाण धणं च भारियं, पव्वइओ हि सि अणगारियं ।
मा वन्तं पुणो वि आइए, समयं गोयम ! मा पमायए॥२९॥ धन तथा पत्नी को त्यागकर तुम अनगार बने हो, प्रव्रजित हुए हो। उन वमन किये हुये भोगों की पुनः इच्छा मत करो। हे गौतम! क्षण मात्र का भी प्रमाद मत करो ॥ २९॥