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on सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
दशम अध्ययन [ 108]
Renouncing wealth and woman you have become a homeless ascetic by getting initiated. Do not desire for those vomited (rejected) pleasures. Gautam! Be not negligent even for a moment. (29)
अवउज्झिय मित्तबन्धवं, विउलं चेव धणोहसंचयं ।
मा तं बिइयं गवेसए, समयं गोयम ! मा पमायए॥३०॥ मित्र, बान्धव, विपुल धन आदि के संचय का परित्याग कर, पुनः दूसरी बार इन मित्रादि की इच्छा मत करो और उनकी तलाश भी मत करो। हे गौतम! क्षण मात्र का भी प्रमाद मत करो॥ ३०॥
After renouncing friends, kin and amassing wealth etc., do not desire for them once again and do not look out for them. Gautam! Be not negligent even for a moment. (30)
न हु जिणे अज्ज दिस्सई, बहुमए दिस्सई मग्गदेसिए।
संपइ नेयाउए पहे, समयं गोयम ! मा पमायए॥३१॥ आज जिन नहीं दीख रहे हैं और मार्गदर्शकों के भी भिन्न-भिन्न अनेक प्रकार के मत हैं (भविष्य में साधकों के समक्ष यह कठिन स्थिति उपस्थित होगी।) किन्तु आज अभी मेरी उपस्थिति में तुम्हें संसार से पार ले जाने में सक्षम न्यायपूर्ण पथ प्राप्त है। अतः हे गौतम! क्षण मात्र का भी प्रमाद मत करो॥ ३१॥
Today Jinas (victors of attachment and aversion) are not to be seen and there are many dogmas of creeds professed by many guides (This is about the difficulties to be faced by aspirants in future). However, at this moment when I am present, the right path to take you across the cycles of rebirth is available to you. Therefore, Gautam! Be not negligent even for a moment. (31)
अवसोहिय कण्टगापह, ओइण्णो सि पहं महालयं ।
गच्छसि मग्गं विसोहिया, समयं गोयम ! मा पमायए॥३२॥ कंटक भरे मार्ग को छोड़कर तुम विशाल महापथ-राजमार्ग पर आ गये हो, दृढ़ निश्चय करके इसी पथ पर बढ़े चलो। हे गौतम! क्षण मात्र का भी प्रमाद मत करो॥ ३२॥
Leaving the thorny path you have come to the broad highway. With firm determination continue your journey on this very path. Gautam! Be not negligent even for a moment. (32)
अबले जह भारवाहए, मा मग्गे विसमेवगाहिया।
पच्छा पच्छाणुतावए, समयं गोयम ! मा पमायए॥३३॥ शक्तिहीन भारवाहक के समान तुम विषम मार्ग पर मत चले जाना; क्योंकि विषम मार्ग पर चलने वाले भारवाहक और साधक को बाद में पछताना पड़ता है। अत: हे गौतम! क्षण मात्र का भी प्रमाद मत करो॥ ३३॥
Like a feeble burden-bearer do not shift to a tough trail. This is because the burdenbearer and the aspirant, who take an uneven path, both lament in the end. Therefore, Gautam! Be not negligent even for a moment. (33)