________________
[105 ] दशम अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
The divine and infernal-beings get reborn in the same genus only once. Therefore, Gautam! Be not negligent even for a moment. (14)
एवं भव-संसारे, संसरइ सुहासुहेहि कम्मे हिं।
जीवो पमाय-बहुलो, समयं गोयम ! मा पमायए॥१५॥ इस प्रकार प्रमाद की अधिकता वाला जीव, शुभाशुभ कर्मों के कारण जन्म-मरणरूप संसार में परिभ्रमण करता रहता है। अत: हे गौतम ! क्षण मात्र का भी प्रमाद मत करो॥ १५ ॥
Thus a soul lost.in excessive stupor keeps on drifting in the world of cyclic rebirths due to meritorious and demeritorious karmas. Therefore, Gautam! Be not negligent even for a moment. (15)
लभ्रूण वि माणुसत्तणं, आरिअत्तं पुणरावि दुल्लहं।
बहवे दसुया मिलेक्खुया, समयं गोथम ! मा पमायए॥१६॥ मनुष्य-जन्म पाने के बाद भी आर्यत्व की प्राप्ति और भी दुर्लभ है क्योंकि बहुत से मनुष्य दस्यु तथा म्लेच्छ भी होते हैं। अतः हे गौतम ! क्षण मात्र का भी प्रमाद मत करो॥ १६ ॥
Even on getting birth as a human it is still rare to gain nobleness since many men are bandits and ignoble also. Therefore, Gautam! Be not negligent even for a moment. (16)
- लभ्रूण वि आरियत्तणं, अहीणपंचिन्दियया हु दुल्लहा।
. विगलिन्दियया हु दीसई, समयं गोयम ! मा पमायए॥१७॥ आर्यत्व-प्राप्ति के उपरान्त भी पाँचों इन्द्रियों की परिपूर्णता-प्राप्ति और भी कठिन है; क्योंकि बहुत से आर्य भी परिपूर्ण इन्द्रियों वाले नहीं दिखाई देते। अत: हे गौतम! क्षण मात्र का भी प्रमाद मत करो॥ १७॥
Even on gaining nobleness (or noble origin) it is difficult to have perfect development of all five sense organs since many nobles deprived of perfectly developed sense organs can also be seen. Therefore, Gautam! Be not negligent even for a moment. (17)
__ अहीणपंचिन्दियत्तं पि से लहे, उत्तमधम्मसुई हु दुल्लहा।
कुतित्थिनिसेवए जणे, समयं गोयम ! मा पमायए॥१८॥ पंचेन्द्रिय की परिपूर्णता प्राप्त होने पर भी उत्तम धर्म का श्रवण और भी कठिन है क्योंकि बहुत से मानव कुतीर्थिकों के उपासक होते हैं। अतः हे गौतम! क्षण मात्र का भी प्रमाद मत करो॥ १८॥
Even on having perfectly developed five sense organs it is even tougher to be able to listen to the right religious tenets since there are also many men worshipping heretics. Therefore, Gautam! Be not negligent even for a moment. (18)
लभ्रूण वि उत्तमं सुई, सद्दहणा पुणरावि दुल्लहा।
मिच्छत्तनिसेवए जणे, समयं गोयम ! मा पमायए॥१९॥ उत्तम धर्म का श्रवण होने पर भी इस सद्धर्म पर श्रद्धा होना और भी कठिन है क्योंकि बहुत से मनुष्य मिथ्यात्वी भी होते हैं, मिथ्यात्व का सेवन करते हैं। अतः हे गौतम! क्षण मात्र का भी प्रमाद मत करो॥१९॥