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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
Hearing these words from Indra and stirred by logic and reason sage Nami answered to Indra thus- (33)
[93] नवम अध्ययन
'जो सहस्सं सहस्साणं, संगामे दुज्जए जिणे । एवं जिज्ज अप्पाणं, एस से परमो जओ ॥ ३४॥
दुर्जय संग्राम में जो दस लाख योद्धाओं को जीत लेता है उसकी अपेक्षा सच्चा वीर वही है जो अपनी आत्मा को जीत लेता है। आत्मविजय ही सच्ची विजय है ॥ ३४ ॥
As compared to a fighter who wins thousands and thousands of warriors in a tough battle, he who conquers his soul is the real brave. Conquering one's soul is, indeed, the real victory. (34)
अप्पाणमेव जुज्झाहि, किं ते जुज्झेण बज्झओ ? अप्पाणमेव अप्पाणं, जइत्ता सुहमेहए ॥ ३५ ॥
स्वयं अपनी आत्मा से ही युद्ध करना चाहिये, बाह्य युद्ध से क्या लाभ है ? आत्मा से आत्मा को जीतने पर ही सच्चा सुख प्राप्त होता है ॥ ३५ ॥
One should fight his own soul. What is the use of an external battle? True happiness is gained by winning one's soul through one's own endeavour. ( 35 )
पंचिन्दियाणि कोहं, माणं मायं तहेव लोहं च ।
दुज्जयं चेव अप्पाणं सव्वं अप्पे जिए जियं ॥ ३६ ॥
पाँचों इन्द्रियाँ, क्रोध, मान, माया, लोभ और मन - ये सभी दुर्जेय हैं। एक अपनी आत्मा को जीत लेने से इन सब पर विजय प्राप्त हो जाती है ॥ ३६ ॥
Five senses (hearing, sight, smell, taste and touch), anger, conceit, deceit and greed (four passions) and mind, all these (ten) are difficult to conquer. However, by winning over one's soul, all these are conquered automatically. ( 36 )
एयमट्ठ निसामित्ता, हेऊकारण- चोइओ । तओ नमिं रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी - ॥ ३७ ॥
नमि राजर्षि के इस कथन को सुन, हेतु - कारण से प्रेरित देवेन्द्र ने नमि राजर्षि से इस प्रकार
कहा- ॥ ३७ ॥
Hearing sage Nami's answer, the king of gods, on the basis of his reason and logic, spoke thus to the sage- (37)
'जइत्ता विउले जन्ने, भोइत्ता समणमाहणे । दच्चा भोच्चा य जिट्ठा य, तओ गच्छसि खत्तिया ! ॥ ३८ ॥
हे क्षत्रिय ! पहले तुम विशाल यज्ञ करो, श्रमण और माहनों को भोजन कराओ, दान दो, भोगों को भोगो और फिर स्वयं यज्ञ करके साधु होना ॥ ३८ ॥