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तर सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
नवम अध्ययन [90]
'समस्त संयोगों से मुक्त और एकान्तदर्शी-आत्मदर्शी मैं अकेला ही हूँ', इस प्रकार की भावना वाले अनगार भिक्षु के लिये सुख ही सुख है॥१६॥
‘Free from all worldly ties I see myself alone (an introvert absorbed in his soul)', for such a homeless ascetic every moment is a happy moment. (16)
एयमठं निसामित्ता, हेऊकारण-चोइओ।
तओ नमिं रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी-॥१७॥ नमि राजर्षि के इस उत्तर को सनकर तथा हेत कारण से प्रेरित होकर इन्द्र ने नमि राजर्षि से कहा-॥१७॥
Hearing sage Nami's answer, the king of gods, on the basis of his reason and logic, spoke thus to the sage- (17)
'पागारं कारइत्ताणं, गोपुरट्टालगाणि य।
उस्सूलग-सयग्घीओ, तओ गच्छसि खत्तिया!'॥१८॥ हे क्षत्रिय! पहले नगर का परकोटा, द्वार, अट्टालिकाएँ, नगर की खाई तथा शतघ्नी (सौ पुरुषों का एक साथ वध कर सके, ऐसी तोप) का निर्माण कराओ, उसके बाद प्रव्रज्या लेना ॥ १८ ॥
O Kshatriya (of warrior caste)! First erect a boundary wall around the city, gates, mansions, a surrounding moat and a shataghni (cannon that can kill hundred warriors in one shot); get initiated only after that. (18)
एयमलृ निसामित्ता, हेऊकारण-चोइओ।
तओ नमी रायरिसी, देविन्दं इणमब्बवी-॥१९॥ देवेन्द्र के यह वचन सुनकर तथा हेतु कारण से प्रेरित होकर नमि राजर्षि ने देवेन्द्र से कहा- ॥ १९॥'
Hearing these words from Indra and stirred by logic and reason sage Nami answered to Indra thus- (19)
'सद्धं नगरं किच्चा, तवसंवरमग्गलं।
खन्तिं निउणपागारं, तिगुत्तं दुप्पधंसयं ॥२०॥ श्रद्धारूपी नगर, तप-संयम की अर्गला-साँकल, क्षमा का परकोटा और तीनों गुप्तियों (मन-वचन-काय गुप्ति) की बुर्ज, खाई और शतघ्नी से सुरक्षित, अजेय बनाकर- ॥ २० ॥
Making faith his city, austerity and restraint its bolts (of the city gate), forgiveness its rampart and making it secure and invincible with the help of three restraints (mental, vocal and bodily) as tower, moat and cannon-(20)
धणु परक्कम किच्चा, जीवं च ईरियं सया।
धिइं च केयणं किच्चा, सच्चेण पलिमन्थए॥२१॥ पराक्रम को धनुष तथा ईर्या समिति को उस धनुष की प्रत्यंचा (डोर), धृति को उसकी मूठ तथा सत्य से उसे बाँधकर- ॥ २१॥