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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
एयमट्ठ
निसामित्ता,
हेऊकारण- चोइओ ।
तओ नमिं रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी - ॥ ११ ॥
नमि राजर्षि का यह उत्तर सुनकर तथा हेतु और कारण से प्रेरित होकर ब्राह्मण वेशधारी इन्द्र नाम राजर्षि से इस प्रकार कहा- ॥ ११ ॥
Hearing sage Nami's answer, the king of gods spoke thus on the basis of his reason and logic - (11)
[89 ] नवम अध्ययन
'एस अग्गी य वाऊ य, एवं डज्झइ मन्दिरं । भयवं ! अन्तेउरं तेणं, कीस णं नावपेक्खसि ? ' ॥ १२ ॥
भगवन् ! अग्नि और वायु से आपका महल तथा अंत:पुर जल रहा है। आप इसकी ओर क्यों नहीं देखते ? ॥ १२ ॥
O revered sage! Due to fire and air your palace with its inner parts is burning. Why do you not even look at that? (12)
एयमट्ठ
निसामित्ता,
ऊकारण - चोइओ | तओ नमी रायरिसी, देविन्दं इणमब्बवी - ॥ १३ ॥
विप्रवेशधारी इन्द्र के इस प्रश्न को सुनकर तथा हेतु और कारण से प्रेरित होकर नमि राजर्षि ने इन्द्र को इस प्रकार उत्तर दिया- ॥ १३ ॥
Hearing this question from Indra disguised as a Brahmin and stirred by logic and reason sage Nami answered to Indra thus- (13)
'सुहं वसामो जीवामो, जेसिं मो नत्थि किंचणं । मिहिलाए डज्झमाणीए, न मे डज्झइ किंचणं ॥ १४ ॥
जिसके पास अपना कुछ भी नहीं है, ऐसा मैं सुख से जीता हूँ । मिथिला के जलने में मेरा कुछ भी नहीं जलता ॥ १४ ॥
I, who has nothing to call my own, live happily. If Mithila is on fire nothing burns that is mine. (14)
चत्तपुत्तकलत्तस्स निव्वावारस्स भिक्खुणो । पियं न विज्जई किंचि, अप्पियं पि न विज्जए ॥ १५ ॥
गृह व्यापार से मुक्त तथा स्त्री- पुत्र के त्यागी श्रमण को न कोई वस्तु प्रिय होती है और न अप्रिय ही होती है ॥ १५ ॥
For a sage, who is free from household affairs and has renounced wife and sons, there is nothing that is dear or repugnant to him. (15)
बहुं खु मुणिणो भद्दं, अणगारस्स भिक्खुणो । सव्वओ विप्पमुक्कस्स, एगन्तमणुपस्सओ ' ॥ १६ ॥