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________________ [75] अष्टम अध्ययन सचित्र उत्तराध्ययन सूत्रता अष्टम अध्ययन : कापिलीय पूर्वालोक-कथा सूत्र कपिल के पिता काश्यप ब्राह्मण चौदह विद्याओं के ज्ञाता और कौशाम्बी-नरेश जितशत्रु की राजसभा के एक रत्न थे। राजा उन्हें बहुत सम्मान देता था। बहुत ही ठाठ-बाट से वे राजसभा को जाते थे। __अचानक ही काश्यप ब्राह्मण की मृत्यु हो जाने से उसकी पत्नी यशा और अल्पवयस्क पुत्र कपिल अनाथ हो गये। राजा जितशत्रु ने उनके स्थान पर दूसरे विद्वान् को नियुक्त कर दिया। अब वह ब्राह्मण ठाठ-बाट से राजसभा में जाने लगा। उस नये राजपण्डित को देखकर यशा की आँखों में आँसू छलक आते। एक बार कपिल ने माँ से आँसुओं का कारण पूछा तो माँ ने सब कुछ बताकर कहा-"पुत्र! जिस समय तुम्हारे पिता का स्वर्गवास हुआ, उस समय तुम अल्पवयस्क थे। यदि विद्या पढ़कर विद्वान् बन जाओ तो पिता का पद तुम्हें मिल सकता है।" । ___कपिल ने विद्या पढ़ने की इच्छा प्रगट की तो माँ ने कहा-"पुत्र! यहाँ तो कोई पण्डित तुम्हें पढ़ायेगा नहीं। तुम्हारे पिता की विद्वत्ता से सभी ईर्ष्या करते हैं। तुम श्रावस्ती चले जाओ। वहाँ तुम्हारे पिता के मित्र इन्द्रदत्त उपाध्याय हैं। वे तुम्हें विद्याओं में निष्णात बना देंगे।" ____ माँ का आशीर्वाद प्राप्त कर कपिल श्रावस्ती जा पहुँचा। इन्द्रदत्त उपाध्याय से मिला, अपना परिचय दिया। इन्द्रदत्त ने कपिल को पढ़ाने का आश्वासन दिया और उसके भोजन तथा निवास की व्यवस्था नगर के धनी श्रेष्ठी शालिभद्र के यहाँ कर दी। श्रेष्ठी ने कपिल की सेवा के लिये एक दासी नियुक्त कर दी। ___अब कपिल दिनभर इन्द्रदत्त उपाध्याय के यहाँ रहकर अध्ययन करता और सन्ध्या समय श्रेष्ठी शालिभद्र के यहाँ आ जाता, वहीं विश्राम करता। दासी और कपिल-दोनों युवा थे, सुन्दर थे, हँसमुख थे। परस्पर आकर्षित हो गये। दासी कपिल के प्रति समर्पित हो गई। किन्तु दोनों ही धनहीन थे। दासी तो दासी ही थी, कपिल भी अध्ययन हेतु आया था, दूसरों की दया पर निर्भर था, अत: धन होने का प्रश्न ही नहीं था। एक बार श्रावस्ती में कोई विशाल जन-महोत्सव होने वाला था। दासी की इच्छा भी उसमें सम्मिलित होने की थी लेकिन महोत्सव के योग्य उसके पास वस्त्र भी न थे। दासी ने अपनी इच्छा कपिल के समक्ष प्रगट की तो अपनी धनहीनता के कारण वह उदास हो गया। दासी ने धन-प्राप्ति का उपाय बताया- "नगर में एक धन कुबेर श्रेष्ठी है। प्रात: जो ब्राह्मण उसे सर्वप्रथम आशीर्वाद देता है उसे वह दो माशा सोना देता है। तुम वहीं पर जाओ।" दूसरा कोई ब्राह्मण आशीर्वाद देने सेठ के पास पहले न पहुँच जाय, इस चिन्ता में कपिल को नींद न आई। वह आधी रात को ही उठकर चल दिया। राजसेवकों ने उसे चोर समझकर पकड़ लिया और प्रातः श्रावस्ती-नरेश प्रसेनजित के सामने पेश कर दिया।
SR No.002494
Book TitleAgam 30 mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages726
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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