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________________ तर, सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र अष्टम अध्ययन [76] राजा के पूछने पर कपिल ने सब कुछ स्पष्ट बता दिया। उसकी सरलता और सत्यवादिता से प्रभावित होकर राजा ने मन-इच्छित धन माँगने का वचन दिया। कुछ समय की मौहलत माँगकर कपिल राजोद्यान में एक स्थान पर बैठकर सोचने लगा-'कितना धन माँD-सौ मुद्राएँ, नहीं ! इनसे क्या होगा? तो दो सौ स्वर्ण-मुद्राएँ? यह भी कम हैं!' इस तरह उसकी इच्छा बढ़ती गई। लाख, करोड़ स्वर्ण-मुद्राएँ भी कम मालूम हुईं। भवन और राजसत्ता तक उसकी तृष्णा दौड़ने लगी। ___ तभी उसके चिन्तन को गहरा झटका लगा-'दो माशा स्वर्ण से पूर्ण होने वाला कार्य करोड़ स्वर्ण-मुद्राओं से भी नहीं हो रहा है। यह इच्छाओं का गड्ढा कितना दुष्पूर है?' ___ बस, कपिल का मन विरक्त हो गया। राजा के पास आया और बोला-“हे राजन् ! मुझे किसी भी वस्तु की इच्छा नहीं है। जो मुझे पाना था, वह पा चुका।" ___ इतना कहकर कपिल राजसभा से निकल गया और निर्ग्रन्थ श्रमण बन गया। छह माह तक छद्मस्थ रहे और फिर केवली हो गये। एक बार कपिल केवली श्रावस्ती और राजगृही के बीच फैले हुए १८ योजन के महारण्य में विहार कर रहे थे। ५०० चारों ने उन्हें घेर लिया। तब कपिल केवली ने चोरों को भावपूर्ण उद्बोधन दिया। चोरों को दिया हुआ वह उद्बोधन ही इस अध्ययन में संकलित है। ___प्रस्तुत अध्ययन के वक्ता कपिल केवली हैं। इन्हीं के नाम पर इसका नामकरण 'काविलीयं' हुआ है। इससे पूर्व सातवें अध्ययन में साधक को विभिन्न दृष्टान्तों द्वारा राग-द्वेष, कामभोग आदि से विरत करने का प्रयास किया गया था। इस अध्ययन में लाभ और लोभ का दुष्पूर चक्र दिखाकर धन के प्रति साधक की आसक्ति को समाप्त करने का प्रयास है। काम और लोभ संसार से मुक्ति प्राप्त करने में सबसे बड़े बाधक तत्त्व हैं। प्रस्तुत अध्ययन में पूर्व आसक्ति, ग्रन्थ (बाह्य-आभ्यन्तर परिग्रह), रस-लोलुपता, लक्षण आदि शास्त्रों के प्रयोग, स्त्री आसक्ति के त्याग तथा संसार की क्षणिकता का बहुत ही संजीव और प्रेरक विवेचन है। हिंसा आदि पापों का वर्णन है। दुर्गति से बचने के उपाय भी बताये गये हैं-संयम, विवेक और विरक्ति। यह भी कहा गया है कि भोगों से उपरति और परिग्रह का सर्वथा त्याग ही संसार से मुक्ति-प्राप्ति में सहायक होता है। इस अध्ययन का सन्देश है-कामभोगों को देखकर भी साधक उन्हें अनदेखा करता रहे। उपेक्षा करता रहे। यह अध्ययन गेयछन्द ध्रुवक में लिपिबद्ध है। प्रस्तुत अध्ययन में २० गाथाएँ हैं।
SR No.002494
Book TitleAgam 30 mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages726
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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