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[73] सप्तम अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
being (man) does not recognize his wellbeing in virtues (preserving the attained virtues and enhancing them). (24)
इंह कामाणियट्टस्स, अत्तट्ठे अवरज्झई । सोच्चा नेयाउयं मग्गं, जं भुज्जो परिभस्सई ॥ २५ ॥
इस मानव - भव में जो कामभोगों से निवृत्त नहीं होता उसका अपना आत्म-प्रयोजन विनष्ट हो जाता है। क्योंकि न्यायमार्ग को बार-बार सुनकर भी वह उससे भ्रष्ट हो जाता है ॥ २५ ॥
He, who does not renounce mundane pleasures in this human birth, loses his true goal of spiritual pursuit because even after hearing about the path of sagacity again and again, he goes astray. (25)
इह काम - पियट्टस्स, अत्तट्ठे नावरज्झई ।
पूइदेह-निरोहेणं, भवे देवे त्ति मे सुयं ॥ २६ ॥
किन्तु इस मनुष्य जन्म में कामभोगों को त्यागने वाले (निवृत्त होने वाले) का आत्मार्थ नष्ट नहीं होता, वह इस मलिन औदारिक शरीर के छूट जाने पर देव बनता है - ऐसा मैंने सुना है॥ २६ ॥
But the renouncer of enjoyments of this human life does not lose the goal of his soul. He becomes god when he gets free of this vile body; so I have heard. (26)
इड्ढी जुई जसो वण्णो, आउं सुहमणुत्तरं । भुज् जत्थ मस्से तथ्य से उववज्जई ॥ २७ ॥
में जन्म
(देवलोक से च्यवन करके) वह पुन: मनुष्य - जन्म ग्रहण करता है तो ऐसे उत्तम कुल लेता है जहाँ उसे श्रेष्ठ ऋद्धि, द्युति, यश, वर्ण, आयु और सुख की प्राप्ति होती है ॥ २७ ॥
(On descending from the divine realm) When he is reborn as a human being, he does so in a upper class family where he gets ample wealth, brilliance, fame, beauty, life-span and happiness. (27)
बालस्स पस्स बालत्तं, अहम्मं पडिवज्जिया ।
चिच्चा धम्मं अहम्मिट्ठे, नरए उववज्जई ॥ २८ ॥
(हे साधक !) बाल जीव की अज्ञानता को देख । वह अधर्म को स्वीकार करता है, धर्म का त्याग करता है और अधार्मिक बनकर नरक में उत्पन्न होता है ॥ २८ ॥
(O aspirant !) See the imprudence of the ignorant. He accepts unrighteousness rejects righteousness and leading unrighteous life takes rebirth in hell. (28)
धीरस्स पस्स धीरतं, सव्वधम्माणुवत्तिणो ।
चिच्चा अधम्मं धम्मिट्ठे, देवेसु उववज्जई ॥ २९ ॥
(और) क्षमा आदि सब धर्मों का परिपालन करने वाले बुद्धिमान तथा धैर्यवान् पुरुष को भी देख। वह अधर्म का त्याग करता है, अतिशय धर्मवान् बनता है और देवों में उत्पन्न होता है ॥ २९ ॥