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[69 ] सप्तम अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
हिंसे बाले मुसावाई, अद्धाणंमि विलोवए । अन्नदत्तहरे तेणे, माई कण्हुहरे सढे ॥ ५ ॥
हिंसक, अज्ञानी, असत्यवादी, बटमार, दूसरों द्वारा दी गई वस्तु को बीच में ही हरण करने वाला, चोर, मायावी, मैं किसका हरण करूँ - इन्हीं विचारों में लगा रहने वाला, धूर्त्त - ॥ ५ ॥
A person who is violent, ignorant, liar, bandit, rustler, thief, crook, thinking always of kidnapping, swindler - (5)
इत्थीविसय गिद्धे य, महारंभ - परिग्गहे । भुंजमाणे सुरं मंसं, परिवूढे परंदमे ॥ ६ ॥
स्त्री तथा अन्य विषयों में गृद्ध, महारम्भी, महापरिग्रही, मद्य-माँस का सेवन करने वाला, बलशाली, दूसरों को त्रस्त करने वाला - ॥ ६ ॥
Obsessed with women and other carnal pleasures, grave sinner, extremely covetuous, consumer of liquor and flesh, strong and oppressive- (6)
अयकक्कर - भोई य, तुंदिल्ले चियलोहिए ।
आउयं नरए कंखे, जहाएस व एलए ॥ ७ ॥
कर-कर शब्द करता हुआ अभक्ष्यभोजी, बड़ी तोंद वाला तथा अधिक रक्त वाला उसी प्रकार नरका की आकांक्षा करता है, जिस प्रकार मेमना अतिथि की प्रतीक्षा करता है ॥ ७ ॥
Eater of prohibited food, pot-bellied and hot-blooded awaits infernal life just like the aforesaid lamb waits for a guest. (7)
आसणं सयणं जाणं, वित्तं कामे य भुंजिया ।
दुस्साहडं धणं हिच्चा, बहुं संचिणिया रयं ॥ ८ ॥
आसन, शय्या, वाहन, धन तथा अन्य कामभोगों का उपभोग कर, घोर परिश्रम तथा दूसरों को दुःखी करके संचित किये हुये धन को छोड़कर अत्यधिक कर्म-रज को संचित कर - ॥ ८ ॥
A person, devoted to the present, after enjoying mundane comforts including seats, beds, means of transport and wealth; leaving behind all the wealth accumulated by much toil and tormenting others, acquiring karmic dirt - ( 8 )
तओ कम्मगुरु जन्तू, पच्चुप्पन्नपरायणे । अय व्व आगयाएसे, मरणन्तंमि सोयई ॥ ९ ॥
कर्मों से भारी हुआ, केवल वर्तमान परायण जीव मरण के समय उसी प्रकार शोक करता है, जिस प्रकार अतिथि के आने पर मेमना करता है ॥ ९ ॥
And getting burdened with karmas, grieves at the hour of death just like the aforesaid lamb grieves at the arrival of a guest. (9)
तओ आउपरिक्खीणे, चुया देहा विहिंसगा । आसुरियं दिसं बाला, गच्छन्ति अवसा तमं ॥ १० ॥
विविध प्रकार से हिंसा करने वाले प्राणी, आयु समाप्त होने पर जब शरीर छोड़ते हैं तो वे अपने कृतकर्मों से विवश होकर अन्धकार से भरे नरक की ओर जाते हैं ॥ १० ॥