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[63] सप्तम अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
निर्दयतापूर्वक मेमने के वध को देखकर बछड़ा घबड़ा गया। उसका रोम-रोम काँपने लगा। माँ के आँचल में अपना मुँह छिपाते हुये उसने कहा-"माँ! आज मालिक ने अपने लाड़ले मेमने को मार दिया। क्या मैं भी किसी दिन इसी तरह मार दिया जाऊँगा?"
गाय ने अपने वत्स (बछड़े) को दुलराते-पुचकारते हुये कहा-"नहीं बेटा ! तू क्यों काटा जाएगा? तू तो सूखी घास खाता है। जो रूखा-सूखा खाते हैं; उन्हें ऐसा भयंकर फल नहीं भोगना पड़ता। जो मनचाहे सुस्वादु भोजन खाते हैं, ऐश करते हैं, इन्द्रिय-विषयों में लम्पट बने रहते हैं, उन्हीं को ऐसे भयंकर परिणाम भोगने पड़ते हैं। छुरी उन्हीं के गले पर चलती है, जो आसक्त होते हैं।"
माँ (गाय) का आश्वासन पाकर बछड़ा शांत हो गया।
इस दृष्टान्त का आशय साधक को इन्द्रिय-विषयों और कामभोगों के कटुफल दिखाकर उनसे विरक्त करना है। क्योंकि भोगों की ओर रुचि भी साधक-जीवन को नष्ट कर देती है।
२. दूसरा दृष्टान्त-अल्प के लिये अधिक को गँवाना एक भिखारी था। उसने परदेश जाकर बड़ी कठिनाई से एक हजार कार्षापण इकट्ठे किये। उन कार्षापणों की थैली लेकर वह अपने गाँव लौट रहा था। मार्ग-व्यय के लिये उसने कुछ काकिणियाँ (एक कार्षापण की ८० काकिणी) अलग रख ली थीं। एक बार वह कहीं एक काकिणी भूल गया और आगे चल दिया। रास्ते में काफी दूर आगे जाने पर उसे काकिणी की याद आई। वह एक काकिणी को कैसे छोड़ सकता था? रास्ता जंगल का था। उसने हजार कार्षापणों की थैली गड्ढा खोदकर एक वृक्ष के नीचे गाड़ दी और काकिणी लेने वापस चल दिया।
उसे थैली गाड़ते एक तस्कर ने छिपकर देख लिया। वह थैली लेकर चम्पत हो गया।
दमक (भिखारी) उसी स्थान पर पहुंचा जहाँ काकिणी भूल आया था लेकिन उसे वहाँ काकिणी नहीं मिली। वापस लौटा तो हजार कार्षापणों की थैली भी गायब थी। . ___उसने एक काकिणी के लिये हजार कार्षापण गँवा दिये। अब वह माथा पीटकर पश्चात्ताप करने लगा।
इस दृष्टान्त में अत्यधिक लोभ का दुष्परिणाम दिखाया है। लोभासक्त व्यक्ति इसी तरह धोखा खाते हैं। अल्प सुख के लिये अधिक (दिव्य) सुखों को खो देने वाले भी इसी तरह दुःखी होते हैं।
३. तीसरा दृष्टान्त-स्वाद के लिये जीवन-नाश एक राजा था। उसे आम बहुत प्रिय थे। नित्य और अधिक आम खाने के कारण, वह रोगी हो गया। एक अनुभवी वैद्य ने इलाज करके उसे स्वस्थ कर दिया और साथ ही कह दिया कि “राजन् ! आम तुम्हारे लिये अपथ्य है। यदि आम का एक टुकड़ा भी तुमने खा लिया तो बच नहीं सकोगे।"
एक बार राजा मंत्री के साथ वन-भ्रमण को गया। वन में आम्रवृक्ष पर पके आमों को देखकर उसका मन ललचा गया। मंत्री के मना करते-करते भी उसने एक आम खा लिया। रोग तीव्र वेग से उभरा और राजा का प्राणान्त हो गया।