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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
क्षणिक् इन्द्रिय-सुखों में आसक्त मानव इसी तरह अपने अनमोल जीवन को गँवा देते हैं। ४. चौथा दृष्टान्त - तीन वणिक् - पुत्र
एक वणिक् ने अपने तीन पुत्रों को द्रव्योपार्जन हेतु विदेश भेजा ।
प्रत्येक को एक-एक हजार कार्षापण दिये और कहा कि “एक वर्ष बाद आकर मुझे बताना कि किसने कितना धन कमाया।"
तीनों भाई धन लेकर विदेश चले गये ।
प्रथम पुत्र ने सोचा-‘पास में धन है तो जिन्दगी का कुछ मजा ले लूँ। बाद में धन कमा लूँगा ।' वह आमोद-प्रमोद, मौज - शौक में पड़ गया। उसकी सारी पूँजी खत्म हो गई।
दूसरे ने पूँजी ब्याज पर लगा दी और ब्याज से अपना खर्च चलाता रहा। उसकी मूल पूँजी सुरक्षित
रही ।
सप्तम अध्ययन [ 64]
तीसरे ने उस पूँजी से व्यापार किया । 'व्यापारे वसति लक्ष्मीः ' के अनुसार उसने खूब लाभ कमाया। अपनी पूँजी कई गुनी कर ली ।
एक वर्ष बाद जब तीनों पुत्र पिता के पास पहुँचे तो पहला फटेहाल था, उसने मूल पूँजी भी गँवा दी; दूसरे ने मूल पूँजी सुरक्षित रखी और तीसरे ने कई गुनी पूँजी पिता के समक्ष रख दी।
शास्त्रकार कहते हैं, यह व्यवहार की उपमा है। धार्मिक क्षेत्र में
मनुष्य जन्म मूल पूँजी है।
देव गति इससे लाभ का उपार्जन है।
पूँजी की हानि नरक, तिर्यंच गति की प्राप्ति है।
यह दृष्टान्त मनुष्य-जन्म पाकर शुभ और शुद्ध आचरण-1 - पुण्योपार्जन तथा कर्मक्षय की प्रेरणा देता है। ५. पाँचवाँ दृष्टान्त - दिव्य और मानव-सुखों की तुलना
इस दृष्टान्त में मानव और देवों के सुखों की तुलना की गई है। देवों के सुखों को सागर के समान और मानवीय सुखों को कुश के अग्र भाग पर लटकी हुई ओस की बूँद के समान बताया गया है।
इन दृष्टान्तों में बहुत ही गहन रहस्य भर दिया गया है।
प्रस्तुत अध्ययन में ३० गाथाएँ हैं।
पाँच दृष्टान्त चित्रों में स्पष्ट दर्शाये गये हैं।
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