________________
तर सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
पंचम अध्ययन [54]
तेसिं सोच्चा सपुज्जाणं, संजयाण वुसीमओ।
न संतसन्ति मरणन्ते, सीलवन्ता बहुस्सुया॥२९॥ उन संत जनों द्वारा पूज्य-वन्दनीय संयत और इन्द्रिय-विजयी आत्माओं का यह वर्णन सुनकर शीलवान् और बहुश्रुत साधक (मुनि अथवा गृहस्थ) मृत्यु के समय भी संत्रस्त-भयभीत नहीं होते ॥ २९ ॥
Having heard from saints this description of venerable, restrained, victorious (over sense) souls, righteous and scholarly aspirants (ascetics or householders) are not scared even at the moment of death. (29)
तुलिया विसेसमादाय, दयाधम्मस्स खन्तिए।
विप्पसीएज्ज मेहावी, तहा-भूएण अप्पणा॥३०॥ मेधावी साधक सकाममरण और अकाममरण की आपस में तुलना करके विशिष्ट (सकाममरण) को स्वीकार करे तथा दयाधर्म और क्षमा से अपनी आत्मा को भावित कर प्रसन्न रहे॥ ३० ॥
The wise aspirant should compare the two (naive and prudent deaths) and then accept the better one (prudent death). Having done that he should enkindle his soul with . kindness and forgiveness and be happy. (30)
तओ काले अभिप्पेए, सड्ढी तालिसमन्तिए।
विणएज्ज लोम-हरिसं, भेयं देहस्स कंखए॥३१॥ मरणकाल निकट आने पर जिस श्रद्धा से प्रव्रज्या ग्रहण की थी उसी श्रद्धा से गुरु के निकट रहकर पीड़ाजन्य लोमहर्ष को दूर करके शान्ति के साथ शरीर छूटने की प्रतीक्षा करे॥ ३१॥
When the time of death approaches he should be in proximity of the guru with the same faith that he had at the time of initiation, subdue all emotions of fear and joy and await deliverance from the body. (31)
अह कालंमि संपत्ते, आघायाय समुस्सयं। सकाममरणं मरई, तिण्हमन्नयरं मुणी॥ ३२॥
-त्ति बेमि। मृत्युकाल प्राप्त होने पर मुनि भक्तपरिज्ञा, इंगिनी और प्रायोपगमन (पादपोपगमन) इन तीनों प्रकार के सकाममरण में से किसी एक प्रकार का मरण स्वीकार करके सकाममरण से शरीर का त्याग करता है॥ ३२॥
-ऐसा मैं कहता हूँ। When the time of death is near an ascetic accepts one of the three methods of prudent death-Giving up food and water till death (bhaktaparijna maran), pinning to spot till death (ingini maran), lying on one side like a fallen branch of a tree (prayopagaman) and abandons his body. (32)
-So I say.