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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
Neither every ascetic nor every householder begets such prudent death. This is because householders are at different levels of uprightness (sheel) and many ascetics too have variable levels of righteousness (sheel). (19)
सन्ति एहिं भिक्खूहिं, गारत्था संजमुत्तरा । गारत्थेहि य सव्वेहिं, साहवो संजमुत्तरा ॥ २० ॥
पंचम अध्ययन [ 52 ]
कुछ भिक्षुओं की अपेक्षा गृहस्थ संयम में बढ़कर होते हैं किन्तु शुद्ध आचारवान् साधु सभी गृहस्थों से संयम में श्रेष्ठ होते हैं॥ २०॥
Some householders are superior to some ascetics in restraint but ascetics with purity of conduct are superior to all householders in restraint. (20)
चीराजिणं
नगिणिणं, जडी-संघाडि - मुण्डिणं ।
याणि विनतायन्ति, दुस्सीलं परियागयं ॥ २१ ॥
चीवर - वस्त्र, अजिन-मृगचर्म, नग्नता, जटाधारण, चिथड़ों की कंथाधारण, शिरोमुण्डन-ये बाह्य वेश भी दीक्षा धारण किये हुये दुःशील - दुराचारी साधु की दुर्गति में जाने से रक्षा नहीं कर सकते ॥ २१ ॥
Garb, deer-skin, nudity, locks of hair, garb made of patches or tonsured head, all these tokens of appearance cannot save an unrighteous ascetic from an ignoble rebirths. (21)
पिण्डोलए व दुस्सीले नरगाओ न मुच्चई ।
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भिक्खाए वा गिहत्थे वा, सुव्वए कम्मई दिवं ॥ २२ ॥
भिक्षा द्वारा अपना जीवन-निर्वाह करने वाला भिक्षु भी यदि दुःशील- दुराचारी है तो उसे नरक में जाना ही पड़ता है और सुव्रती भिक्षु हो अथवा गृहस्थ वह स्वर्ग ही प्राप्त करता है ॥ २२ ॥
Getting his livelihood by alms if such an ascetic is unrighteous in conduct, he is bound to go to hell; while an ascetic or householder, whoever he is, goes to heaven alone if he has righteous conduct. (22)
अगार - सामाइयंगाई, सड्ढी काएण फासए ।
पोसहं दुहओ पक्खं, एगरायं न हावए ॥ २३ ॥
श्रद्धालु गृहस्थ साधक सामायिक साधना के सभी अंगों की काया से ( मन-वचन से भी) साधना करे तथा शुक्ल और कृष्ण पक्ष दोनों में ( पर्व तिथियों को) पौषध करे, एक भी पर्व रात्रि को पौषध न छोड़े ॥ २३ ॥
A devout householder should practice all limbs of the ritual equanimity-practice (saamaayik) physically, vocally and mentally. He should also observe partial ascetic vow (paushadh) during bright as well as dark fortnights (on specified auspicious dates) not avoiding even a single auspicious night. (23)