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[51] पंचम अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
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As a cart-driver, leaves a level highway, to take a rough and bumpy trail (shortcut) and then laments when the axle breaks. (14)
एवं धम्म विउक्कम्म, अहम्म पडिवज्जिया।
बाले मच्चु-मुहं पत्ते, अक्खे भग्गे व सोयई॥१५॥ इसी प्रकार धर्म-पथ का व्युत्क्रम करके अधर्म पर चलने वाला, मृत्यु के मुख में पड़ा हुआ अज्ञानी जीव भी गाड़ी की धुरी टूटे गाड़ीवान के समान चिन्ता-शोक करता है॥ १५ ॥
In the same way, the ignorant who transgresses the religious path and shifts to evil ways is filled with worries and grief, like the said cart-driver, when he lands up in jaws of death. (15)
तओ से मरणन्तमि, बाले सन्तस्सई भया।
. अकाममरणं मरई, धुत्ते व कलिना जिए॥१६॥ एक ही दाँव में सब कुछ हारे हुये जुआरी के समान वह अज्ञानी जीव मृत्यु के समय परलोक के भय से संत्रस्त होकर अकाममरण से मरता है॥ १६॥
Like a gambler, who has lost everything in a single bet, that ignorant being, overwhelmed by fear of the next birth at the last moment, dies a naive death. (16)
.. एयं अकाममरणं, बालाणं तु पवेइयं ।
एत्तो सकाममरणं, पण्डियाणं सुणेह मे॥१७॥ - यहाँ तक तो अज्ञानी जीवों के अकाम का वर्णन किया गया है। अब यहाँ से आगे पंडितों (ज्ञानी जीवों) के सकाममरण का वर्णन मुझसे सुनो॥ १७॥
Up to this point the naive death of ignorant beings has been described. Now onwards listen to my description of the prudent death of the wise. (17)
मरणं पि सपुण्णाणं, जहा मेयमणुस्सुयं।
विप्पसण्णमणाघायं, संजयाणं वुसीमओ॥१८॥ जैसा कि मैंने परम्परा से सुना है-संयत, जितेन्द्रिय तथा पुण्यशालियों का मरण अति प्रसन्न और आघातरहित होता है॥ १८॥
As I have heard from my tradition the death of the disciplined, victors (over senses) and pious, is in a very happy and serene state (free of shock or fear) of mind. (18)
न इमं सव्वेसु भिक्खूसु, न इमं सव्वेसुऽगारिसु।
नाणा-सीला अगारत्था, विसम-सीला य भिक्खुणो॥१९॥ इस सकाममरण से न सभी साधु ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं और न सभी गृहस्थ ही; क्योंकि गृहस्थ भी भिन्न-भिन्न प्रकार के शील वाले होते हैं और बहुत से भिक्षु (साधु) भी विषम (विभिन्न) शील वाले होते हैं॥ १९ ॥