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[49] पंचम अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
जे गिद्धे कामभोगेसु, एगे कूडाय गच्छई।
'न मे दिढे परे लोए, चक्खु-दिट्ठा इमा रई॥५॥ जो व्यक्ति कामभोगों में गृद्ध होता है, वह अकेला कूट (हिंसा तथा मृषावाद) की ओर जाता है। वह कहता है कि परलोक तो मैंने देखा ही नहीं किन्तु यह सांसारिक सुख तो प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं॥५॥
A person infatuated with carnal pleasures, is drawn to evil (violence and falsehood) alone. He says-'I have not seen the other world (next birth) but these mundane pleasures can be seen plainly and directly. (5)
'हत्थागया इमे कामा, कालिया जे अणागया।
को जाणइ परे लोए, अत्थि वा नत्थि वा पुणो'॥६॥ - ये कामभोग तो हाथ में आये हुये हैं; लेकिन भविष्यकालीन सुख तो अनिश्चित हैं। कौन जानता है, परलोक है भी अथवा नहीं है॥६॥
The present mundane pleasures are in hand but the future ones are uncertain. Who knows if there is a next life or not? (6)
'जणेण सद्धिं होक्खामि', इइ बाले पगब्भई।
काम-भोगाणुराएणं, केसं संपडिवज्जई॥७॥ _ 'मैं तो जनसाधारण के साथ ही रहूँगा' (इन्हीं के बीच रहना है, जो इनकी दशा होगी, वह मेरी भी हो जाएगी) ऐसी धारणा बनाकर वह ढीठ बन जाता है और कामभोग-गृद्धि के कारण स्वयं ही कष्टित-पीड़ित होता है॥ ७॥
___ I will go with the masses', (I have to live among them, whatever happens to them would happen to me as well) with this idea he (the indulgent) becomes impudent and due to his infatuation with carnal pleasures he invites misery and grief himself. (7)
तओ से दण्डं समारभई, तसेसु थावरेसु य।
अट्ठाए य अणट्ठाए, भूयग्गामं विहिंसई॥८॥ तब वह त्रस और स्थावर जीवों पर दण्ड-प्रयोग करता है। सप्रयोजन अथवा निष्प्रयोजन ही प्राणी समूह की हिंसा, उनका विनाश करता है॥ ८॥
Then he inflicts torture on mobile and immobile beings. He turns violent towards the multitude of living beings and destroys them with or without purpose. (8)
हिंसे बाले मुसावाई, माइल्ले पिसुणे सढे।
भुंजमाणे सुरं मंसं, सेयमेयं ति मन्नई॥९॥ वह हिंसक, अज्ञानी-बाल, मृषावादी, कपटी, चुगलखोर, शठ, धूर्त होता है तथा मद्य-माँस का सेवन करता हुआ मानता है कि यही श्रेयस्कर है॥९॥
He is violent, ignorant, fallacious, deceitful, slanderer, vicious and cunning. He consumes alcohol and meat believing that alone is beneficial. (9)