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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
पंचम अध्ययन [50]
कायसा वयसा मत्ते, वित्ते गिद्धे य इत्थिसु।
दुहओ मलं संचिणइ, सिसुणागु व्व मट्टियं ॥१०॥ वह तन और वचन से सदा उन्मत्त बना रहता है, धन और स्त्रियों में आसक्त रहता है तथा राग और द्वेष दोनों प्रवृत्तियों से उसी प्रकार कर्ममल का संचय करता है जिस प्रकार अलसिया-कैंचुआ शरीर और मुख दोनों ओर से मिट्टी का संचय करता रहता है॥ १० ॥
He remains frenzied in body and speech, infatuated with wealth and women, he accumulates the slime of karmas through indulgence in attachment and aversion, just like an earthworm gathering sand through its mouth (by swallowing) as well as body (collecting by sticky skin). (10)
तओ पुट्ठो आयंकेणं, गिलाणो परितप्पई।
पभीओ परलोगस्स, कम्माणुप्पेहि अप्पणो॥११॥ तब वह अज्ञानी प्राणघातक रोग से ग्रसित होकर खिन्न और परितप्त होता है तथा अपने किये हुये दुष्कर्मों का अनुप्रेक्षण-स्मरण कर परलोक से भयभीत होने लगता है॥११॥
Then that ignorant, afflicted by terminal disease laments and suffers. Recalling the evil deeds committed by him he dreads the future rebirth. (11) .
सुया मे नरए ठाणा, असीलाणं च जा गई।
बालाणं कूर-कम्माणं, पगाढा जत्थ वेयणा ॥१२॥ तब (वह सोचता है) मैंने नरक-स्थानों के विषय में सुना है जो अज्ञानी, क्रूरकर्मी और दुःशील जीवों की गति है और वहाँ अत्यधिक तीव्र कष्टकारी वेदना होती है॥ १२ ॥
He then thinks-I have heard about the infernal worlds that are destinies of rebirth for ignorant, cruel and vicious people, and where intense and torturing agony awaits them. (12)
तत्थोववाइयं ठाणं, जहा मेयमणुस्सुयं ।
आहाकम्मेहिं गच्छन्तो, सो पच्छा परितप्पई॥१३॥ मैंने परम्परा से सुना है कि उन नरकों में उत्पत्ति-स्थान (कुम्भियाँ हैं, जिनमें जन्म लेते ही प्राणी युवा हो जाता है) हैं। मनुष्य-आयु क्षय होते ही जीव अपने कर्मों के अनुसार वहाँ (नरकों में) जाता हुआ बहुत दुःखी होता है॥ १३॥
I have come to know from tradition that infernal worlds have birth places (vessels where a being is born as fully formed youth). At the end of the human life-span the soul goes there according to its karmas and suffers heaps of misery. (13)
जहा सागडिओ जाणं, समं हिच्चा महापहं।
विसमं मग्गमोइण्णो, अक्खे भग्गंमि सोयई॥१४॥ जिस प्रकार कोई गाड़ीवान समतल महापथ को छोड़कर ऊबड़-खाबड़ विषम मार्ग पर चल पडता है और फिर गाडी की धरी टट जाने पर शोक करता है॥ १४॥