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[उ.] (हे आर्यो!) यह अर्थ समर्थ नहीं है।
Sudharma
5-1. [Q.] Bhante ! Can Chamarendra, the king of Asur kumar gods, enjoy divine pleasures sitting on the Chamar throne in his assembly in his capital Chamarchancha along with the said group of goddesses?
[Ans.] (Noble ones !) That is not true.
५-२. [ प्र. ] से केणट्ठेणं भंते ! एवं वुच्चइ - नो पभू चमरे असुरिंदे चमरचंचाए रायहाणीए जाव विहरित्तए ?
[ उ. ] “अज्जो! चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो चमरचंचाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए माणवए चेइयखंभे वइरामएस गोलवट्टसमुग्गएसु बहूओ जिसकाओ सन्निक्खित्ताओ चिट्ठति, जाओ णं चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो अन्नेसिं च बहूणं असुरकुमाराणं देवाण य देवीण य अच्चणिज्जाओ वंदणिज्जाओ नसणा पूयणिज्ज़ाओ सक्कारणिज्जओ सम्माणणिज्जाओ कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पच्जुवासणिज्जाओ भवंति, तेसिं पणिहाए नो पभू; से तेणट्ठेणं अज्जो ! एवं वुच्चइ-नो
भू चमरे असुरिंदे जाव राया चमरचंचाए जाव विहरित्तए । "
५-२. [प्र.] भगवन्! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर 5 चमरचंचा राजधानी की सुधर्मा सभा में यावत् भोग्य दिव्य भोगों को भोगने में समर्थ नहीं है ?
[उ.] आर्यो! असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर की चमरचंचा नामक राजधानी की सुधर्मा सभा में माणवक चैत्य-स्तम्भ में, वज्रमय ( हीरों के ) गोल डिब्बों में जिन भगवान की बहुत-सी अस्थियाँ रखी हुई हैं, जो कि असुरेन्द्र असुरकुमारराज के लिए तथा अन्य बहुत से असुरकुमार देवों और देवियों के लिए अर्चनीय, वन्दनीय, नमस्करणीय, पूजनीय, सत्कारयोग्य एवं सम्मानयोग्य हैं। वे कल्याणरूप, मंगलरूप, देवरूप चैत्यरूप एवं पर्युपासनीय हैं, इसलिए उन (जिन भगवान् की अस्थियों) के सान्निध्य में वह (असुरेन्द्र अपनी सुधर्मा सभा में ) भोग भोगने में समर्थ नहीं हैं। इसीलिए हे आर्यो! ऐसा कहा गया है कि असुरेन्द्र यावत् चमर, चमरचंचा राजधानी की सुधर्मा सभा में दिव्य भोग भोगने में समर्थ नहीं है।
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5-2. [Q.] Bhante ! Why is it said that Chamarendra, the king of Asur-kumar gods, is unable to enjoy ... and so on up to ... with the said group of goddesses?
१. 'जाव' पद सूचित पाठ - " नट्टगीयवाइयतंतीतलतालतुडियघणमुइंगपडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाई ति" ।
(45)
दशम शतक : पंचम उद्देशक
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Tenth Shatak: Fifth Lesson
फळ